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बीजेपी 25 जून को 'संविधान हत्या दिवस' के रूप में मना रही है। इसका मकसद कांग्रेस द्वारा लगाए गए 1975 के आपातकाल की निंदा करना है। लेकिन इस आयोजन के विरोध में सिर्फ कांग्रेस नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी भी खुलकर सामने आ गई हैं।

सवाल यह है कि जब बीजेपी का यह कार्यक्रम सीधे कांग्रेस के खिलाफ है, तो ममता बनर्जी, जो खुद कांग्रेस से अलग हो चुकी हैं, वह इसके विरोध में क्यों हैं?

दरअसल, ममता बनर्जी का विरोध किसी एक पार्टी के समर्थन में नहीं है, बल्कि यह बीजेपी की राजनीति के तौर-तरीकों और उसकी नीतियों के खिलाफ है। ममता का मानना है कि वर्तमान केंद्र सरकार भी लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर रही है। उनका कहना है कि आज भी संविधान के मूल्यों पर हमला हो रहा है, लेकिन एक अलग तरीके से—कानून के नाम पर या संस्थागत नियंत्रण के ज़रिए।

विपक्षी गठबंधन 'INDIA' में शामिल ममता बनर्जी यह संकेत देना चाहती हैं कि संविधान की रक्षा सिर्फ इतिहास में झांकने से नहीं, बल्कि वर्तमान की नीतियों से लड़ने से होगी। उन्होंने यह भी इशारा किया कि आज जो लोग संविधान बचाने की बात कर रहे हैं, वे खुद लोकतंत्र को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

ममता की यह रणनीति उन्हें कांग्रेस से अलग दिखाने के साथ-साथ राष्ट्रीय विपक्ष की मजबूत आवाज़ भी बनाती है। उनका मकसद यह जताना है कि बीजेपी जो मुद्दा उठा रही है, वह केवल राजनीतिक लाभ के लिए है, न कि वास्तव में संविधान की रक्षा के लिए।
 

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