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Up Kiran, Digital Desk: वैश्विक व्यापार और जलवायु परिवर्तन नीतियों के बीच एक नया टकराव सामने आया है। दुनिया की प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं का समूह, ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) यूरोपीय संघ (EU) के प्रस्तावित कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (Carbon Border Adjustment Mechanism - CBAM), जिसे अक्सर 'कार्बन सीमा शुल्क' (Carbon Border Tax) कहा जाता है, का कड़ा विरोध कर रहा है। यह विवाद वैश्विक व्यापार संबंधों और जलवायु कार्रवाई के भविष्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।

यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा शुल्क क्या है?
यूरोपीय संघ का तर्क है कि यह टैक्स 'कार्बन लीकेज' को रोकने के लिए आवश्यक है। कार्बन लीकेज का मतलब है ऐसी स्थिति से बचना जहां यूरोपीय कंपनियां सख्त पर्यावरणीय नियमों और कार्बन लागतों के कारण अपना उत्पादन ऐसे देशों में स्थानांतरित कर दें जहां उत्सर्जन नियम कम कठोर हों। यूरोपीय संघ का मानना है कि CBAM कार्बन-गहन उत्पादों (जैसे स्टील, सीमेंट, एल्युमीनियम, उर्वरक और बिजली) के आयात पर शुल्क लगाकर एक समान खेल का मैदान बनाएगा, ताकि यूरोपीय कंपनियों को प्रतिस्पर्धा में नुकसान न हो।

ब्रिक्स देश इसका विरोध क्यों कर रहे हैं?
ब्रिक्स देशों का कहना है कि यह टैक्स असल में एक 'संरक्षणवादी' उपाय है, जो विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर अनुचित बोझ डालेगा। उनके विरोध के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:

यह विवाद दिखाता है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक प्रयासों में भी आर्थिक हितों और विकासशील देशों की जरूरतों को संतुलित करना कितना महत्वपूर्ण है। ब्रिक्स देश विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे मंचों पर इस मुद्दे को उठाने की योजना बना रहे हैं, जिससे आने वाले समय में वैश्विक व्यापार संबंधों में और तनाव बढ़ सकता है

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