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Up Kiran, Digital Desk: हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार को आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह संस्कार न केवल शारीरिक रूप से विदाई का अवसर होता है, बल्कि इसे आत्मा को शांति प्राप्त करने और अगले जन्म के लिए शुभ संकेत मानते हैं। हिंदू परंपरा में हर व्यक्ति का अंतिम संस्कार उसकी जाति, स्थिति और आयु के हिसाब से विभिन्न रीति-रिवाजों के साथ किया जाता है।
विवाहित महिला का अंतिम संस्कार: एक विशेष परंपरा
हिंदू संस्कृति में विवाहित महिला के अंतिम संस्कार से पहले एक अनूठी परंपरा का पालन किया जाता है। उसकी मृत्यु के बाद, दाह संस्कार से पूर्व 16 श्रृंगार किए जाते हैं। यह श्रृंगार न केवल उसकी सुंदरता और शालीनता को सम्मानित करता है, बल्कि यह एक भावनात्मक और सांस्कृतिक प्रक्रिया भी है।
श्रृंगार की परंपरा और सीता की मां का योगदान
यह परंपरा सीता की मां, सुनैना से जुड़ी हुई मानी जाती है। सुनैना ने यह सिखाया था कि विवाह के समय महिला को श्रृंगार करके ससुराल भेजा जाता है, और मृत्यु के समय भी उसका श्रृंगार करके ही विदाई दी जानी चाहिए। इसका उद्देश्य मृत व्यक्ति को आदर्श सम्मान और श्रद्धा प्रदान करना होता है। इस परंपरा का पालन करते हुए यह मान्यता बनी कि महिला के श्रृंगार से अगले जन्म में उसे सौभाग्य और समृद्धि प्राप्त होती है।
श्रद्धा और मान्यता: अगले जन्म की दिशा
इस परंपरा का मूल उद्देश्य केवल सौंदर्य की अभिव्यक्ति नहीं है, बल्कि इसका गहरा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी है। यह मान्यता है कि यदि महिला का श्रृंगार ठीक से किया जाता है और उसे सम्मानपूर्वक विदाई दी जाती है, तो उसके अगले जन्म में सुख और समृद्धि का मार्ग खुलता है। हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद के संस्कारों को मुक्ति प्राप्ति के रास्ते के रूप में देखा जाता है, और श्रृंगार इस मार्ग को पवित्रता और सौभाग्य से जोड़ता है।
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