Up Kiran, Digital Desk: हम सबने कभी न कभी कुत्तों या दूसरे जानवरों के काटने के बारे में सुना है। अक्सर लोग इसे एक मामूली घाव समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन यही छोटी सी भूल मौत का कारण बन सकती है। वजह है रेबीज - एक ऐसी बीमारी, जिसका नाम सुनते ही अच्छे-अच्छे डॉक्टरों के भी पसीने छूट जाते हैं।
हैरानी की बात यह है कि आज विज्ञान ने कैंसर और एड्स जैसी बीमारियों का इलाज ढूंढने में काफी तरक्की कर ली है, लेकिन रेबीज के आगे आज भी विज्ञान लाचार है। सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्यों है? क्यों एक बार रेबीज के लक्षण दिखने शुरू हो जाएं, तो मरीज का बचना नामुमकिन हो जाता है?
दिमाग पर कर लेता है कब्जा
इसे सरल भाषा में समझिए। रेबीज का वायरस किसी जादूगर की तरह शरीर में घुसता है और चुपचाप बिना किसी को बताए, नसों के रास्ते दिमाग की तरफ अपना सफर शुरू कर देता है। इस सफर में हफ्तों या महीनों लग सकते हैं, और इस दौरान मरीज को पता भी नहीं चलता कि उसके अंदर एक जानलेवा दुश्मन पल रहा है।
जैसे ही यह वायरस दिमाग तक पहुंचता है, यह अपना असली खेल शुरू करता है। यह दिमाग पर पूरी तरह से कब्जा कर लेता है। दिमाग ही हमारे शरीर का कंट्रोल रूम है, और जब कंट्रोल रूम पर ही दुश्मन का राज हो जाए, तो शरीर का कोई भी अंग ठीक से काम नहीं कर सकता।
इलाज काम क्यों नहीं करता?
जब तक मरीज में रेबीज के लक्षण (जैसे पानी से डरना, बेचैनी, लकवा) दिखने शुरू होते हैं, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इसका मतलब है कि वायरस दिमाग को अपनी चपेट में ले चुका है। इस स्टेज पर कोई भी दवा या इंजेक्शन काम नहीं करता, क्योंकि वो दिमाग के अंदर के इस डैमेज को ठीक नहीं कर सकता। वायरस दिमाग के चारों तरफ एक तरह का ताला लगा देता है, जिससे कोई भी दवा उस तक पहुंच ही नहीं पाती।
बचाव ही एकमात्र उपाय है
यही वजह है कि रेबीज का कोई इलाज नहीं है, सिर्फ और सिर्फ बचाव है। अगर किसी भी जानवर ने काटा है या खरोंच भी मारी है, तो उसे बिल्कुल भी हल्के में न लें। तुरंत उस जगह को साबुन और पानी से 15 मिनट तक धोएं और फौरन डॉक्टर के पास जाकर एंटी-रेबीज वैक्सीन लगवाएं। यही वैक्सीन शरीर में वायरस के दिमाग तक पहुंचने से पहले ही उसे खत्म कर देती है।
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