धर्म डेस्क। हिन्दू पंचांग के अनुसार हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन से चातुर्मास शुरू हो जाता है। इस दौरान सृष्टि के संचालक भगवान विष्णु का शयन काल आरंभ हो जाता है। इस तिथि से अगले चार माह के लिए प्रभु निद्रा में चले जाते हैं। इसी अवधि में शुभ और मांगलिक कार्य नहीं होते हैं। इन दिनों में सिर्फ भगवान की आराधना होती है। इस दौरान पीपल के पेड़ की पूजा करने से कई गुना अधिक लाभ मिलता है।
शास्त्रों के अनुसार चातुर्मास के दौरान प्रभु निद्रा में होते हैं, लेकिन उनकी पूजा-पाठ जरूर करना चाहिए। इस अवधि में पीपल की पेड़ की पूजा करना शुभ फलदाई माना गया है। धर्म शास्त्र के अनुसार चातुर्मास में पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करने मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दौरान घर में भजन कीर्तन आदि का आयोजन करना चाहिए।
सनातन परंपरा के अनुसार भगवान विष्णु जब निद्रा में होते हैं तब संसार की बागडोर महादेव के हाथ में होती है। ऐसे में चातुर्मास में भगवान् शिव जी की आराधना करना विशेष फलदाई होता है। चातुर्मास में सात्विक भोजन करने और ब्राह्मणों को दान देने से कई जन्म सुधर जाते हैं। इस अवधि में पक्षियों को दाना देने से भी जीवन में उल्लास आता है।
चातुर्मास में विवाह, सगाई, मुंडन जैसे शुभ एवं मंगल कार्यो का निषेध किया गया है। इस दौरान ऐसा कुछ भी करने से बचें। इस अवधी में नए वस्त्र नहीं खरीदना चाहिए। इस समय नया व्यवसाय शुरू करना भी जोखिम भरा होता है। इस दौरान तामसिक भोजन करने से बचना चाहिए एवं किसी भी व्यक्ति को अपशब्द नहीं बोलना चाहिए।
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