भारत के एक ऐसे प्रधानमंत्री जिन्हें नोबल शांति पुरस्कार के लिए 11 बार नामित किया गया, लेकिन……

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भारत के पहले प्रधानमंत्री और नए भारत के शिल्पकार कहे जाने वाले पंडित जवाहर लाल नेहरू को आज भी किसी ना किसी राजनीतिक उद्देश्य को साधने के लिए याद किया जाता रहा. देश की स्वतंत्रता के लिए और देश के नव निर्माण के लिए अपने जीवन को अर्पण करने वाले विश्वविख्यात राजनीतिज्ञ पंडित जवाहर लाल नेहरु जी को सभी जानते हैं। हालांकि नेहरू की चर्चा आज भी कई मौके पर होती रहती हैं. आइए जानते हैं उनके बारे में.

जवाहरलाल नेहरू का जन्म एक कश्मीरी पंडित व वकीलों के परिवार में 14 नवंबर 1889 में हुआ था. उनके पिता का नाम मोतीलाल नेहरू था जो अपने जमाने के बड़े बैरिस्टर थे, वहीं उनकी माता का नाम स्वरूप रानी था. नेहरू ने अपनी स्कूली शिक्षा हैरो से और कॉलेज की पढ़ाई ट्रिनिटी कॉलेज, लंदन से पूरी की.

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इसके बाद उन्होंने अपनी लॉ की डिग्री कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से ली. वह बचपन से ही पढ़ने-लिखने में तेज थे. लंदन के इनर टेंपल में उन्होंने दो वर्ष बिताए और इस दौरान उन्होंने वकालत की पढ़ाई पूरी की. भारत लौटकर वह इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस करने लगे.

वकालत करते-करते वह अपने पिता मोतीलाल नेहरू और महात्मा गांधी के साथ कांग्रेस पार्टी से जुड़ गए. धीरे-धीरे वह अपने काम के बदौलत कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में शुमार हो गए. ये जवाहरलाल नेहरू ही थी जिन्होंने 1929 में पूर्ण स्वराज्य की मांग की थी.

पंडित नेहरू के भारत वापस लौटने पर 1916 में उनकी शादी कमला नेहरू से हुई. 1941 के बाद महात्मा गांधी ने उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था. नेहरू के फैशन के बारे में काफी बातें की जाती हैं. उनका बंद कॉलर वाला नेहरू जैकेट आज भी काफी पसंद किया जाता है.

आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि पंडित नेहरू को 11 बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया, हालांकि एक बार भी उन्हें यह पुरस्कार नहीं मिल सका. लंबे संघर्षों के बाद जब 1947 में भारत को आजादी मिली और तब वह स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री चुने गए. संसदीय सरकार की स्थापना और विदेशी मामलों गुटनिरपेक्ष नीतियों की शुरुआत जवाहरलाल नेहरू की ओर से हुई थी.

एक अच्छे नेता और वक्ता होने के साथ ही पंडित नेहरू उच्चकोटि के लेखक भी थे. उनकी लिखी कई किताबें ऐसी हैं जो हर किसी को पढ़नी चाहिए. उनकी लिखी डिस्कवरी ऑफ इंडिया में उन्होंने भारत के बारे में जिस तरह से बताया है वह दर्शाता है कि भारत को लेकर उनकी समझ कैसी थी. उन्होंने ये किताबें लिखीं- द डिस्कवरी ऑफ इंडिया, ग्लिम्पसेज ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री, उनकी आत्मकथा-टुवार्ड फ्रीडम, बेटी को लिखे उनके खतों का संग्रह- लेटर्स फ्रॉम ए फादर टू हिज डॉटर.

पंडित नेहरू के खतों व किताबों से पता चलता है कि उन्हें भारत की मिट्टी से कितना प्यार था. यही प्यार उनकी वसीयत में भी झलकता है. उन्होंने अपनी वसीयत में लिखा था- मैं चाहता हूं कि मेरी मुट्ठीभर राख प्रयाग के संगम में बहा दी जाए जो हिन्दुस्तान के दामन को चूमते हुए समंदर में जा मिले, लेकिन मेरी राख का ज्यादा हिस्सा हवाई जहाज से ऊपर ले जाकर खेतों में बिखरा दिया जाए, वो खेत जहां हजारों मेहनतकश इंसान काम में लगे हैं, ताकि मेरे वजूद का हर जर्रा वतन की खाक में मिलकर एक हो जाए.

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