Up kiran,Digital Desk : दोस्तों, इन दिनों देश के कई राज्यों में वोटर लिस्ट को सुधारने (SIR प्रक्रिया) का काम जोर-शोर से चल रहा है। इस बीच, सियासी गलियारों में यह बहस छिड़ी हुई है कि किसका नाम लिस्ट में रहेगा और किसका कटेगा। इसी गरमागर्मी के बीच बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसी बात कह दी है, जो हर भारतीय को जाननी चाहिए।
कोर्ट ने सीधा सवाल पूछा है कि अगर किसी के पास आधार कार्ड है, तो क्या इसका मतलब यह है कि उसे वोट डालने का भी अधिकार मिल गया? खास तौर पर उन लोगों के लिए जो पड़ोसी देशों से आए हैं और यहाँ मजदूरी कर रहे हैं।
आइये, आसान भाषा में समझते हैं कि कोर्ट के अंदर चीफ जस्टिस (CJI) और वकीलों के बीच क्या-क्या बातें हुईं।
आधार कार्ड: सिर्फ सुविधा के लिए, वोट के लिए नहीं
सुनवाई के दौरान CJI सूर्य कांत ने बहुत ही पते की बात कही। उन्होंने साफ किया कि आधार कार्ड एक विशेष कानून के तहत बनाया गया डॉक्यूमेंट है। इसका मकसद लोगों को सरकारी सुविधाएं (जैसे सस्ता राशन) देना है।
जज साहब ने उदाहरण देते हुए समझाया, "मान लीजिये, कोई इंसान पड़ोसी देश से भारत आ गया। यहाँ वो रिक्शा चला रहा है या मजदूरी कर रहा है। हमारी इंसानियत और संवैधानिक नैतिकता कहती है कि उसे भूखा नहीं मरने दिया जाए, इसलिए उसे सब्सिडी वाला राशन देने के लिए आधार कार्ड जारी कर दिया गया। लेकिन इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि राशन के साथ-साथ उसे सरकार चुनने का यानी 'वोट डालने' का भी हक दे दिया जाए।"
कोर्ट का इशारा साफ़ था—आधार कार्ड इस बात का सबूत नहीं है कि आप भारत के वोटर हैं।
कपिल सिब्बल बोले- अगर वोट डालने गया और नाम गायब मिला तो?
इस मामले में वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने अपना पक्ष रखा। वे पश्चिम बंगाल और केरल की तरफ से पैरवी कर रहे थे। उनका कहना था कि जिनके पास आधार कार्ड है और जो बरसों से यहाँ रह रहे हैं, उनके नाम वोटर लिस्ट से काटे जा रहे हैं।
सिब्बल ने दलील दी, "अगर कोई व्यक्ति मतदान के दिन बूथ पर जाए और देखे कि लिस्ट में उसका नाम ही नहीं है, तो वो क्या करेगा? आज कल ऐसे सॉफ्टवेयर हैं जो डुप्लीकेट नाम हटा सकते हैं, इसके लिए अफसरों (BLOs) को इतनी पावर देने की क्या जरूरत है कि वे नाम काट दें?"
कोर्ट का करारा जवाब: "सॉफ्टवेयर मुर्दों को नहीं पहचानता"
सिब्बल की 'सॉफ्टवेयर' वाली दलील पर जस्टिस बागची ने बहुत ही लॉजिकल जवाब दिया। उन्होंने कहा, "मिस्टर सिब्बल, सॉफ्टवेयर एक ही आदमी के दो नाम (डुप्लीकेट) तो पकड़ सकता है, लेकिन वह यह नहीं बता सकता कि कौन सा वोटर मर चुका है।"
जज साहब ने आगे एक कड़वी सच्चाई भी बोली, जिसे सुनकर आप भी हैरान रह जाएंगे। उन्होंने कहा, "सच्चाई यह है कि जो पार्टी इलाके में ताकतवर होती है, वो मरे हुए लोगों के नाम पर भी अपने पक्ष में वोट डलवा लेती है। हम ये बात हवा में नहीं कह रहे। इसलिए, मृत वोटरों का नाम लिस्ट से हटाना बेहद जरूरी है, चाहे वो पार्टी A हो या पार्टी B।"
बिहार का उदाहरण: मीडिया ने सब बता दिया था
CJI ने बिहार का जिक्र करते हुए कहा कि वहां भी वोटर लिस्ट का काम हुआ था और बहुत कम शिकायतें आईं। उन्होंने मीडिया की तारीफ करते हुए कहा कि मीडिया हर दिन रिपोर्ट कर रहा था, जिससे दूर-दराज के गांव में बैठे व्यक्ति को भी पता था कि लिस्ट सुधर रही है। ऐसे में यह कहना गलत होगा कि लोगों को पता ही नहीं चला और नाम कट गया।
कोर्ट ने यह भरोसा दिलाया कि अगर किसी सच्चे भारतीय नागरिक (Genuine Citizen) का नाम गलती से कटा है, तो कोर्ट उसे बहुत गंभीरता से लेगी और सुधारेगी। लेकिन सिर्फ आधार दिखाकर घुसपैठियों को वोटर नहीं माना जा सकता।
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