Birthday Special : AR रहमान ने भारतीय सिनेमा के साथ विदेशों में भी अपने संगीत का लहराया परचम

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शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

आज हम आपको ऐसे संगीतकार के बारे में बताएंगे जिनकी पहचान भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के तमाम देशों में फैली हुई है। उनके संगीत में एक अजीब सी कशिश है जो श्रोताओं के दिलो-दिमाग को सुकून देती है। हम बात कर रहे हैं बॉलीवुड और साउथ सिनेमा के दिग्गज संगीतकार एआर रहमान की।

देश ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के करोड़ों लोगों को अपने बेहतरीन संगीत से दीवाना बना देने वाले एआर रहमान का आज जन्मदिन है । उनके संगीत को शब्दों में बयां करना मुश्किल है। रहमान ने तमिल से लेकर हिंदी और फिर हॉलीवुड तक अपने संगीत का परचम लहराया । उन्हें शानदार संगीत देने के लिए देश ही नहीं बल्कि विश्व के तमाम बड़े पुरस्कारों से नवाजा गया ।

मां का 28 दिसंबर को चेन्नई में हो गया था निधन

बात को आगे बढ़ाएं उससे पहले आपको बता दें कि रहमान की मां का कुछ दिनों पहले 28 दिसंबर को चेन्नई में निधन हो गया, वह काफी समय से बीमार चल रही थी । संगीतकार रहमान अपनी मां के बेहद करीब थे । वह जब नौ साल के थे तभी उन्होंने पिता को खो दिया था। पिता के निधन के बाद उनकी मां ने उनका लालन पालन किया । उन्होंने ही रहमान के भीतर की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें म्यूजिक के लिए प्रेरित किया था। आइए आज उनके संगीत के सफर और निजी जीवन के बारे में बात किया जाए।

कम लोग यह जानते हैं कि रहमान का जन्म वास्तव में एक हिंदू परिवार में हुआ था। जहां उनका नाम दिलीप कुमार रखा गया था। युवा दिलीप कुमार ने अपने आध्यात्मिक गुरु कादरी इस्लाम से प्रेरित होकर 23 साल में सनातन धर्म छोड़ इस्लाम अपना लिया। कादरी ने दिलीप कुमार को अल्लाह रक्खा रहमान बना दिया, जिन्हें हम एआर रहमान के नाम से जानते हैं। रहमान ने 1995 में सायरा बानू से शादी की। एआर रहमान और सायरा के तीन बच्चे हैं। खातिजा, रहीमा और अमीन हैं।

6 जनवरी 1967 को रहमान का जन्म चेन्नई में हुआ था

एआर रहमान का जन्म 6 जनवरी 1967 को तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई (तब मद्रास) में हुआ था। रहमान को संगीत अपने पिता से विरासत में मिला । शुरू में उनको संगीत में कोई खास रुचि नहीं थी। उनके संगीत के सफर की शुरुआत तब हुई, जब पांचवीं कक्षा में उनके पिता ने रहमान को एक म्यूजिक की बोर्ड गिफ्ट किया इससे संगीत से उनका जुड़ाव हुआ। उनके पिता आरके शेखर मलयाली फिल्मों में शिक्षा देते थे। संगीतकार ने संगीत की शिक्षा मास्टर धनराज से प्राप्त की। रहमान जब नौ साल के थे, तभी उनके पिता का देहांत हो गया और पैसों की खातिर परिवार वालों को वाद्ययंत्र तक बेचने पड़े। 11 साल की उम्र में ही संगीत के क्षेत्र से जुड़ गए

रहमान अपने बचपन के दोस्त शिवमणि के साथ ‘रहमान बैंड रुट्स’ के लिए सिंथेसाइजर बजाने का काम करते थे। चेन्नई के बैंड ‘नेमेसिस एवेन्यू’ की स्थापना में भी रहमान का अहम योगदान रहा। रहमान पियानो-हारमोनयिम, गिटार भी बजा लेते थे। रहमान ने 15 साल में स्कूल छोड़ दिया, लेकिन अपनी कला से इतना प्रभावित किया कि लोग उसके कायल हो गए। बैंड ग्रुप में ही काम करने के दौरान रहमान को लंदन के ट्रिनिटी कॉलेज से स्कॉलरशिप मिला और इस कॉलेज से उन्होंने पश्चिमी शास्त्रीय संगीत में तालीम हासिल की।

वर्ष 1995 में आई फिल्म ‘रोजा’ से रहमान को मिली पहचान

1991 में रहमान ने अपना खुद का म्यूजिक रिकॉर्ड करना शुरू किया। 1992 में उन्हें फिल्म निर्देशक मणिरत्नम ने ‘रोजा’ में संगीत देने का मौका दिया । फिल्म का संगीत जबरदस्त हिट साबित हुआ और रातों रात रहमान मशहूर हो गए। पहली ही फिल्म के लिए रहमान को फिल्म फेयर पुरस्कार मिला था। फिल्म ‘रोजा’ का हर गाना हिट हुआ।

यहीं से रहमान हर आयु वर्ग के दिलों पर छा गए । इसके बाद रहमान ने पीछे मुड़कर नहीं देखा एक से बढ़कर एक फिल्मों में संगीत दिया। उसके बाद बॉम्बे’, ‘रंगीला’, ‘दिल से’, ‘ताल’, ‘जींस’, ‘पुकार’, ‘फिजा’, ‘लगान’, ‘स्वदेस’, ‘जोधा-अकबर’, ‘युवराज’, रॉकस्टार जैेसी कई फिल्मों में संगीत दिया है। एआर रहमान ने बॉलीवुड के अलावा हॉलीवुड की कई फिल्मों के लिए भी अपना म्यूजिक दिया है। इनमें स्लमडॉग मिलियनेयर, 127 आवर्स, गॉड ऑफ वार, मिलियन डॉलर जैसी फिल्में शामिल हैं।

उनका गाया ‘वंदे मातरम’ और ‘जय हो’ विश्व भर में प्रसिद्ध हुआ था

रहमान के गानों की 200 करोड़ से भी अधिक रिकॉर्डिग बिक चुकी है। वह विश्व के 10 सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों में शुमार किए जाते हैं। वह उम्दा गायक भी हैं। देश की अजादी के 50वें सालगिरह पर 1997 में बनाया गया उनका अल्बम ‘वंदे मातरम’ बेहद कामयाब रहा। इस जोशीले गीत को सुनकर देशभक्ति मन में हिलोरें मारने लगती है।

साल 2002 में जब बीबीसी वर्ल्ड सर्विस ने 7000 गानों में से अब तक के 10 सबसे मशहूर गानों को चुनने का सर्वेक्षण कराया तो ‘वंदे मातरम’ को दूसरा स्थान मिला। सबसे ज्यादा भाषाओं में इस गाने पर प्रस्तुति दिए जाने के कारण इसके नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड भी दर्ज है। इसके अलावा ​रहमान के गाए गीत ‘दिल से’, ‘ख्वाजा मेरे ख्वाजा’, ‘जय हो’ आदि भी खूब मशहूर हुए हैं। वर्ष 2010 में रहमान नोबेल पीस प्राइज कंसर्ट में भी प्रस्तुति दे चुके हैं।

ऑस्कर, गोल्डन ग्लोब और ग्रैमी अवॉर्ड से नवाजे गए रहमान

अपने खूबसूरत गानों से लाखों दिलों की जीतने वाले मशहूर और दिग्गज संगीतकार एआर रहमान विश्व के सबसे बड़े पुरस्कार से नवाजा गया है। ​वर्ष 2000 में रहमान पद्मश्री से सम्मानित किए गए। फिल्म ‘स्लम डॉग मिलेनियर’ के लिए वह गोल्डन ग्लोब, ऑस्कर और ग्रैमी जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजे जा चुके हैं। इस फिल्म का गीत ‘जय हो’ देश-विदेश में खूब मशहूर हुआ। एआर रहमान ने कई संगीत कार्यक्रमों में इस गीत को गाया।

ए आर रहमान 6 राष्ट्रीय पुरस्कार, 15 फिल्मफेयर पुरस्कार, दक्षिण भारतीय फिल्मों में बेहतरीन संगीत देने के लिए 13 साउथ फिल्म फेयर पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। फिल्म ‘127 आवर्स’ के लिए रहमान बाफ्टा पुरस्कार से सम्मानित किए गए। नवंबर 2013 में कनाडा प्रांत ओंटारियो के मार्खम में एक सड़क का नामकरण संगीतकार के सम्मान में ‘अल्लाह रक्खा रहमान’ कर दिया। संगीतकार रहमान के प्रशंसक देश ही नहीं बल्कि दुनिया के तमाम देशों में हैं ।

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