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यूपी में इलेक्सन 2022 के लिए प्रचार-प्रसार काफी ज्यादा तेजी हो रहा है। भारतीय प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह से लेकर कई बड़े नेताओं तक बीजेपी ने चुनाव प्रचार में मैदान में उतारा है. वहीं दूसरी तरफ मुख्य विपक्षी पार्टी सपा भी दिन प्रतिदिन राज्य भर में अलग-अलग जिलो प्रचार कर रही हैं।

Yogi-Akhilesh and Mayawati - Assembly Election-2022

जातिगत रूढ़ियों के जरिए भी बीजेपी और सपा एक दूजे को मात देने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि इस बीच बसपा चीफ मायावती की निष्क्रियता इलेक्शन को लेकर कुछ और ही इशारे कर रही है. बीते तीन दशकों में, यूपी इलेक्शन हमेशा त्रिकोणीय मुकाबला रहा है। कांग्रेस दो दशक से हाशिए पर है. ऐसे में अब बीएसपी के बहुत कमजोर दिखने से राजनीतिक गणित बदल सकते हैं और इसका नुकसान सीधे तौर पर भारतीय जनता पार्टी को हो सकता है.

जानें क्या है समीकरण

इस गणित को जानने के लिए हमें 2017 के इलेक्शनों के नतीजों का विश्लेषण करना होगा। तब बीएसपी भले ही 19 सीटें जीत पाई थी, मगर उसे 22.23 % वोट मिले थे, जो बीजेपी के पश्चात सबसे अधिक थे। वहीं सपा ने 21.82 फीसद वोटों के साथ 47 सीटें प्राप्त की थी। कांग्रेस को 6.25 पर्सेंट वोटों के साथ महज सात सीटें ही मिल पाई थीं। मगर अब पांच वर्षों में मायावती की पार्टी मजबूत होने की बजाय कमजोर होती नजर आ रही है। उसके 19 में से केवल तीन एमएलए ही बचे हैं। बसपा चीफ खुद एक दर्जन विधायकों को पार्टी से निष्कासित कर चुकी हैं। इसके अलावा 3 वर्ष में 4 मर्तबा प्रदेश अध्यक्ष बदल चुकी हैं।

ऐसे मायावती की कमजोरी पहुंचाएगी बीजेपी को नुकसान

आपको बता दें कि अब तक बसपा चीफ न तो कोई बड़ी रैली की है और न ही दूसरी पार्टी से टूटकर किसी नेता ने बीएसपी का दामन थामा है। स्पष्ट है कि मुख्य लड़ाई बीजेपी व अखिलेश एंड कंपनी के बीच ही नजर आ रही है और यही बात भगवा कपड़ों के लिए चिंता का सबब है।

सन् 2017 में बीजेपी को 39.67 प्रतिशत मत मिले थे और 312 सीटों पर विजय मिली थी। स्पष्ट है कि 60 % वोट बीजेपी के विरूद्ध था, जो बीएसपी, एसपी व कांग्रेस सहित कई अन्य पार्टियों में बंट गया था। अब जबकि मायावती की पार्टी कमजोर होती दिख रही है तो उसके हिस्से का बड़ा वोट अखिलेश यादव की पार्टी के खाते में जा सकता है।

 

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