शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस (Congress) संकटों से लगातार घिरती जा रही है। अपने उसूलों और विचारधारा के लिए जानी जाने वाली यह पार्टी सबसे खराब दौर में है। ‘कांग्रेस की आज हालत ऐसी है कि जैसे कोई वस्तु बीच बाजार में नीलाम होने के लिए खड़ी हुई हो’। पार्टी में सबसे बड़ा संकट डेढ़ साल से नेतृत्व को लेकर रहा है। यही नहीं ‘कांग्रेस पिछले कुछ महीनों से दो धड़ों बंटी हुई है, यानी पार्टी का एक वर्ग ऐसा है जो खुलेआम गांधी परिवार की खिलाफत करने में जुटा हुआ है’।
वर्ष 2014 में केंद्र की राजनीति में जब से भाजपा ने कब्जा जमाया है तभी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह, कांग्रेस (Congress) का देश से वजूद मिटाने में लगे हुए हैं। कांग्रेस को लगातार दो आम चुनाव में भयानक हार का सामना करना पड़ा, 2014 के आम चुनाव में 44 लोकसभा सीटें लाने वाली पार्टी 2019 के चुनाव में मात्र 52 सीट ही हासिल कर सकी है। यह हार इतनी बुरी थी कि देश के 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पार्टी का खाता नहीं खुल पाया।
‘आज कांग्रेस (Congress) के लिए 28 दिसंबर बहुत महत्वपूर्ण है । क्योंकि कांग्रेस (Congress) इस तारीख को अपना स्थापना दिवस मनाती है। देश की सबसे पुरानी पार्टी आज अपना 136वां स्थापना दिवस बड़े उदास मन से मना रही है’। बात को आगे बढ़ाएं उससे पहले बता दें कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Congress) की स्थापना 72 प्रतिनिधियों की उपस्थिति के साथ 28 दिसंबर1885 को बॉम्बे के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में हुई थी। इसके संस्थापक महासचिव (जनरल सेक्रेटरी) ए ओ ह्यूम थे जिन्होंने कलकत्ता के व्योमेश चन्द्र बनर्जी को अध्यक्ष नियुक्त किया था। उसके बाद कांग्रेस की देश को आजाद कराने में प्रमुख भूमिका भी रही।
‘देश के स्वतंत्र होने के बाद भी कांग्रेस (Congress) का स्वर्णिम युग शुरू हुआ और पार्टी ने देश पर एकछत्र शासन भी किया। पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री पद की कमान भी संभाली। इसके अलावा पार्टी में सैकड़ों ऐसे कद्दावर नेता रहे जो कांग्रेस को आगे बढ़ाते रहें, लेकिन यह पार्टी गांधी परिवार के इर्द-गिर्द ही रही। लेकिन अब कांग्रेस के कई नेताओं ने गांधी परिवार के खिलाफ विरोधी स्वर दिखाई दे रहे हैं’। इस बार कांग्रेस के स्थापना दिवस पर पार्टी के नेताओं में सामंजस्य नहीं दिख रहा है। नेताओं के आपसी मनमुटाव और राहुल गांधी की अनुपस्थिति की वजह से देशभर के कार्यकर्ता भी मायूस हैं।
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बदलते समय के साथ ये पार्टी एक खास परिवार के नाम से ही पहचानी जाने लगी। कांग्रेस का मतलब गांधी परिवार है, कांग्रेस में इनकी मर्जी के बिना कुछ भी नहीं हो सकता। पार्टी के सबसे तेज तर्रार नेता राहुल गांधी इटली यात्रा पर चले गए हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं में स्थापना दिवस मनाने के लिए न तो कोई वजह दिखाई पड़ रही है न नेतृत्व की ओर से कोई खास दिशा-निर्देश जारी किए गए।
‘राहुल के विदेश जाने और सोनिया गांधी के सक्रिय न होने पर भाजपा के फायर ब्रांड नेता गिरिराज सिंह ने भी राहुल गांधी पर चुटकी लेते हुए उन पर तंज कसा। गिरिराज सिंह ने ट्वीट कर लिखा कि ‘भारत में राहुल गांधी की छुट्टी खत्म हो गई है, आज वह इटली वापस चले गए’।
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दूसरी ओर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सोमवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी को निशाने पर ले लिया। उन्होंने कांग्रेस के स्थापना दिवस पर नदारद रहने को लेकर ट्वीट में लिखा, ‘कांग्रेस इधर अपना 136 वां स्थापना दिवस मना रही है और राहुल ‘9 2 11’ हो गए। हालांकि कांग्रेस अपने स्थापना दिवस के मौके पर देश भर में तिरंगा यात्रा का आयोजन कर रही है। इसके लिए पार्टी ने सोशल मीडिया पर बाकायदा ‘सेल्फी विद तिरंगा अभियान’ भी चलाया हुआ है।
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इसके जरिए वह कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम कर रही है। लेकिन कार्यकर्ताओं में इतनी निराशा है वह कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर बिखरने लगे हैं। पार्टी के सीनियर नेता भी शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ अब सार्वजनिक रूप से बयानबाजी कर रहे हैं। पार्टी को एकजुट रखने में अब गांधी परिवार का करिश्मा भी काम नहीं आ रहा है।
लगातार हार पर भी कांग्रेस अपनी विचारधारा में परिवर्तन नहीं कर पा रही—
कुछ वर्षों से कांग्रेस की लगातार हार होती जा रही है, उसके बावजूद भी गांधी परिवार इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है । इसके बावजूद भी कांग्रेस में विचारधारा, संगठन और शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर कोई खास बदलाव नहीं हो रहा है। इसके उलट जो लोग इस तरह के बदलाव की मांग कर रहे हैं उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है।
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‘बता दें कि सात अगस्त को कांग्रेस के 23 प्रमुख नेताओं ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर कांग्रेस में संगठन, उसकी कार्यप्रणाली और नेतृत्व में परिवर्तन की मांग की थी। इसके बाद भी पार्टी में कोई नया परिवर्तन देखने को नहीं मिला’, हालत यह है कि पार्टी के पास अभी एक नियमित अध्यक्ष नहीं है। ‘सोनिया गांधी कांग्रेस की कार्यवाहक या अंतरिम अध्यक्ष बनी हुई हैं। कांग्रेस के कई शीर्ष नेता अब गांधी परिवार का कोई अध्यक्ष देखना नहीं चाहते हैं’।
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कांग्रेस का सबसे बड़ा संकट यह है कि वह हर जरूरी सवाल से भाग रही है। नेतृत्व का मसला सुलझाए और संगठन में बदलाव किए बिना कांग्रेस का संकट खत्म नहीं होने वाला है लेकिन पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इसे छोड़कर हर बार कुछ नया प्रयोग करने लग जा रहा है। नेतृत्व का मसला सुलझाए और संगठन में बदलाव किए बिना कांग्रेस का संकट खत्म नहीं होने वाला।
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पिछले दिनों ही गांधी परिवार के दो बहुत खास और कद्दावर नेता मोतीलाल वोरा और अहमद पटेल भी अब नहीं रहे’। अब गांधी परिवार को अपनी सोच और विचारधारा में कुछ परिवर्तन लाना होगा। पिछले दिनों शिवसेना भी कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर सवाल उठा रही है। जबकि वह महाराष्ट्र में कांग्रेस के समर्थन से सरकार चला रही है, उसके बावजूद वह विरोध में आ खड़ी हुई है।
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