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Up Kiran, Digital Desk: श्रीकृष्ण जन्मोत्सव यानी जन्माष्टमी का पर्व हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को बड़े श्रद्धा भाव से मनाया जाता है। लेकिन इस बार पंचांग की गणनाओं में थोड़ा अंतर होने से भक्तों के बीच उलझन की स्थिति बन गई है। कहीं 15 अगस्त की रात को पूजन की बात हो रही है, तो कहीं 16 अगस्त को उपवास और 17 अगस्त को पारण की सलाह दी जा रही है।

अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र का मेल नहीं, तो किस दिन मनाएं पर्व?

पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास की कृष्ण अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र के संयोग में हुआ था। लेकिन 2025 में ये दोनों योग एक साथ नहीं आ रहे हैं। पंचांग के अनुसार अष्टमी तिथि 15 अगस्त की रात 11:49 बजे शुरू होकर 16 अगस्त को रात 9:24 बजे तक रहेगी। वहीं, रोहिणी नक्षत्र का आरंभ 17 अगस्त की सुबह 4:38 बजे से होगा।

ऐसे में दोनों का संयोग न होने पर क्या किया जाए? विद्वानों और धर्मगुरुओं की मानें तो ऐसे अवसर पर ‘उदय तिथि’ के अनुसार व्रत और पूजन करना श्रेयस्कर होता है। इस लिहाज से जन्माष्टमी का पर्व 16 अगस्त को मनाना उचित बताया गया है।

पूजन और व्रत के शुभ मुहूर्त

निशीथ पूजन समय: 16 अगस्त की रात 12:04 बजे से 12:47 बजे तक

पूजन अवधि: कुल 43 मिनट

मध्यान्ह क्षण: रात 12:25 बजे

चंद्रमा उदय: रात 11:32 बजे

व्रत पारण का समय: 17 अगस्त सुबह 5:51 बजे के बाद

व्रत-पूजन की विशेष बातें

इस दिन भक्त उपवास रखते हैं और रात 12 बजे के आसपास श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव धूमधाम से मनाते हैं। बाल स्वरूप ‘लड्डू गोपाल’ का विशेष रूप से दूध, दही, शहद, घी और गंगाजल (पंचामृत) से अभिषेक किया जाता है। इसके बाद भगवान को माखन-मिश्री, तुलसी पत्र और वस्त्र अर्पित कर श्रृंगार किया जाता है।

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