नवरात्रि (Navratri) में देवी मां को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए दुर्गा सप्तशती, राम रक्षा स्त्रोत का पाठ और मंत्र जाप करना शुभ फलदायी माना जाता है। एक ऐसा ही पाठ है सिद्ध कुंचिका स्तोत्रम। कहते हैं ये स्त्रोत दुर्गा सप्तशती के पाठ बराबर ही प्रभावशाली है। ज्योतिषी बताते हैं कि अगर समय की कमी की वजह से दुर्गा सप्तशती का पाठ नहीं कर पा रहे हैं तो नवरात्रि (Navratri) के नौ दिनों में सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ कर देवी की उपासना की जा सकती है। इस पाठ से भी पूजा और व्रत का अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। हां मां भगवती के इस पाठ को करने की विधि है उसका पालन अवश्य करना चाहिए। आइए जानते हैं सिद्ध कुंजिका पाठ की विधि और इससे मिलने वाले लाभ के बारे में…
कैसे करें सिद्ध कुंजिका स्तोत्र:
मां दुर्गा की पूजा करते समय साफ़-सफाई और शुद्धता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। सुबह-शाम जब भी आप ये पाठ करें तो स्नान के बाद साफ वस्त्र धारण करें और फिर पाठ आरंभ करें। कहते हैं अगर ये पाठ रात के समय किया जाये तो अधिक फलदायी होता है। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र: का पाठ शुरू करने से पहले मां दुर्गा के समक्ष घी का दीपक जलाएं। दीपक को देवी की प्रतिमा के दाईं तरफ रखें। सरसों के तेल का दीपक है तो उसे बाईं तरफ रखें। पूर्व दिशा की तरफ मुख करके कुश के आसन पर बैठें और पथ आरंभ करें। (Navratri)
ज्योतिषी कहते हैं कि यदि किसी विशेष मनोकामना पूर्ति के लिए सिद्ध कुंजिका स्तोत्र कर रहे हैं तो हाथ में जल, फूल और अक्षत लेकर जितने पाठ एक दिन में कर सकते हैं उसका संकल्प लें। नवरात्रि के पूरे नौ दिनों तक इसका नियम से पालन करेंगे तभी इसका पूर्ण फल प्राप्त होगा।
अगर मनचाहा फल पाने के लिए सिद्ध कुंजिका स्तोत्र: का पाठ कर रहे हैं तो ब्रह्मचर्य का पालन करें। देवी की पूजा में पवित्रता का बहुत अधिक महत्व है। (Navratri)
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के लाभ (Navratri)
- दरअसल सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में मां दुर्गा की नौ देवियां और दस महाविद्या का वर्णन किया गया है। इस पाठ को विधि-विधान से करने से अष्टसिद्धियां प्राप्त होती हैं।
- इस पाठ के प्रभाव से जातक उच्चाटन, वशीकरण, मारण, मोहन, स्तम्भन जैसी सिद्धि प्राप्त करने में भी सफल होता है।
- ज्योतिषी कहते हैं कि इस पाठ को करने से ग्रहों के अशुभ प्रभाव खत्म हो जाते हैं और भक्त की धन लाभ, विद्या अर्जन, शत्रु पर विजय, नौकरी में पदोन्नति, अच्छी सेहत, कर्ज से मुक्ति, यश-बल में बढ़ोत्तरी की इच्छा पूर्ण होती है। (Navratri)
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र:
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजाप: भवेत्।।1।।
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्।।2।।
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्।।3।।
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।।4।।
अथ मंत्र
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।”
।।इति मंत्र:।।
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन।।1।।
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन।।2।।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।।3।।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।।4।।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण।।5।।
धां धीं धू धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु।।6।।
हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।7।।
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।। 8।।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे।।
इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।
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