बिजली इन्जीनियर फेडरेशन ने मुख्य मन्त्रियों से की इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल का विरोध करने की अपील

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ऑल इण्डिया पावर इन्जीनियर्स फेडरेशन ने देश के सभी प्रांतों व् केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य मन्त्रियों को पत्र भेजकर कोरोना महामारी के बीच निजीकरण हेतु लाये गए इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 का विरोध करने की अपील की है। फेडरेशन ने मुख्यमंत्रियों को प्रेषित पत्र में कहा है कि इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल पारित हो गया तो बिजली के मामले में राज्यों के अधिकार का हनन होगा और टैरिफ तय करने से लेकर बिजली की शिड्यूलिंग तक में केंद्र का दखल होगा |

फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने बताया कि बिजली संविधान की समवर्ती सूची में है, जिसका अर्थ है कि बिजली के मामले में राज्यों को केंद्र के समान बराबर का अधिकार है, किन्तु इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल के जरिये बिजली के मामले में केंद्र एकाधिकार ज़माना चाहता है | उन्होंने कहा कि मौजूदा कानून के अनुसार राज्य सरकार के कहने पर राज्य का विद्युत् नियामक आयोग किसानों, गरीबों और कम बिजली उपभोग करने वाले घरेलू उपभोक्ताओं के लिए सब्सिडी को सम्मिलित करते हुए बिजली की तर्कसंगत दरें तय करता है।

शैलेन्द्र दुबे ने बताया कि नए बिल में यह प्राविधान किया गया है कि नियामक आयोग बिजली की दरें तय करने में सब्सिडी को सम्मिलित नहीं कर सकता और सभी उपभोक्ताओं को बिजली की पूरी लागत देनी होगी। इस प्रकार बिजली की दरें तय करने में गरीब उपभोक्ताओं को सब्सिडी देने के राज्य के अधिकार को छीना जा रहा है।

शैलेन्द्र दुबे ने बताया कि केंद्र सरकार नए बिल के अनुसाए इलेक्ट्रिसिटी कॉन्ट्रैक्ट एनफोर्समेन्ट अथॉरिटी का गठन कर रही है। यह अथॉरिटी बिजली वितरण कंपनियों और निजी क्षेत्र के बिजली उत्पादन घरों के बीच बिजली खरीद के करार के अनुसार भुगतान को सुनिश्चित करने का कार्य करेगी। इस अथॉरिटी के पास यह अधिकार होगा कि यदि निजी उत्पादन कंपनी का भुगतान सुनिश्चित नहीं किया गया है तो राज्य को केंद्रीय क्षेत्र और पावर एक्सचेंज से एक यूनिट बिजली भी न मिल सके। इस नई अथॉरिटी के बनने के बाद राज्य में बिजली देने का अधिकार अब केंद्र सरकार के पास चला जाएगा।

नए बिल में यह प्राविधान किया जा रहा है कि राज्य विद्युत् नियामक आयोग के चेयरमैन और सदस्यों की नियुक्ति का अधिकार अब केंद्र सरकार के पास चला जायेगा। इनका चयन हेतु अब केंद्र सरकार की चयन समिति करेगी, जिसमे राज्य का कोई प्रतिनिधि भी नहीं होगा।
नए बिल में एक निश्चित प्रतिशत तक सोलर पावर खरीदना राज्य के लिए बाध्यकारी होगा। ऐसा न करने पर राज्य को भारी पेनाल्टी देनी होगी। इसके अलावा बिजली की जरूरत न होने पर भी यह बिजली खरीदनी पड़ेगी, जिसके लिए राज्य को अपनी बिजली उत्पादन इकाइयों को बंद करना पडेगा। इस प्रकार इस बिल से केंद्र के अधिकार बढ़ेंगे और राज्य के अधिकारों का हनन होगा |

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