लखनऊ। यूपी वन निगम में बहुमूल्य लकड़ियों की नीलामी में खेल चल रहा है। नीलामी के लिए आनलाइन और आफलाइन जारी की गई विक्रय सूची में बड़ा अंतर है। एक शिकायतकर्ता ने बाकायदा निगम के प्रबंध निदेशक को पत्र लिखकर पूरे गोलमाल से अवगत कराया है। दरअसल, यूपी वन निगम में अपनों को रेवड़ी बांटने के लिए वर्षों से साफ्टवेयर के जरिए गड़बड़झाला किया जा रहा है।
ताजा मामले में शिकायत के बाद मामले को मैनेज करने के लिए अफसरों ने भी दिमाग लगाया और पूर्व में आनलाइन की गई विक्रय सूची के हिसाब से ही नीलामी कराई। कम्प्यूटर और साफ्टवेयर कभी झूठ नहीं बोलते हैं। यदि इसकी जांच कराई जाए तो बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का खुलासा होगा। देखने वाली बात यह होगी कि निगम में बड़े पैमाने पर वर्षों से चल रही इस हेराफेरी पर आला अफसर कोई कार्रवाई करते हैं या नहीं?
आनलाइन विक्रय सूची में खैर लकड़ी का जिक्र नहीं
शिकायती पत्र के अनुसार, 12 अगस्त को भिनगा ए डिपो के सार्वजनिक नीलामी की 36 पेज की सूची वन निगम की वेबसाइट पर उपलब्ध है। उसमें खैर लकड़ी शामिल नहीं है। सूची पर तिथि 8 अगस्त 2023 अंकित है। इसके उलट डिपो पर नीलामी के लिए उपलब्ध आफलाइन विक्रय सूची 67 पेज की है। उसमें खैर लकड़ी की 101 लाट शामिल है।
समय से नहीं दी गई जानकारी
यह भी कहा गया है कि वन निगम की वेबसाइट पर भिनगा ए डिपो की आधी अधूरी विक्रय सूची 11 अगस्त को प्रदर्शित की गई। ऐसी परिस्थिति में दूर दराज से आने वाले क्रेता को इसकी जानकारी समय से नहीं मिल सकेगी तो फिर वह समय से नहीं पहुंच सकेगा।
क्या होती है गड़बड़ी?
विभागीय जानकारो का कहना है कि नियम है कि नीलामी के छह दिन पहले विक्रय सूची वेबसाइट पर अपलोड कर दी जाएगी। निगम के अधिकारी नीलामी से ठीक एक दिन पहले उसी विक्रय सूची को बदल देते हैं। जिसकी वजह से नीलामी में शामिल होने आए ठेकेदारों को उचित जानकारी सही समय पर नहीं मिल पाती है।
अपनों को अनुचित लाभ पहुंचाने को रची साजिश
आरोप लगाया गया है कि कुछ जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा अपनों को अनुचित लाभ पहुंचाने के मकसद से यह कुटिल साजिश रची गई है। शिकायतकर्ता ने पूरे मामले की गहनता से जांच कराकर कार्रवाई की मांग की है।
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