Up kiran,Digital Desk : दोस्तों, आज हम एक ऐसी खबर पर बात कर रहे हैं जो किसी का भी खून खौला दे और आंखों में आंसू ला दे। हमीरपुर के जलालपुर की एक 16 साल की बच्ची पिछले 26 दिनों से सिर्फ मौत से नहीं लड़ रही, बल्कि इस लाचार 'सिस्टम' से भी लड़ रही है।
सोचिए, जिस बच्ची के साथ 28 अक्टूबर की रात हैवानों ने रेप किया और उसे तेजाब पिला दिया, आज वह लखनऊ में एक स्ट्रेचर पर पड़ी है। गले से लेकर आंतों तक, तेजाब ने उसे अंदर से जला दिया है। खून की उल्टियां हो रही हैं, तेज बुखार है, लेकिन उसका इलाज कागजों और रुपयों की कमी में उलझा हुआ है।
पिता का दर्द: 6 अस्पताल, 3.5 लाख कर्ज और हाथ खाली
एक पिता के दर्द का अंदाजा आप इस बात से लगाइए कि वो अपनी बेटी को कंधे पर लादे हमीरपुर, झांसी, कानपुर से लेकर लखनऊ तक भटक रहा है। पिछले करीब एक महीने में वह 6 बार अस्पताल बदल चुके हैं।
- झांसी: वहां 10 दिन इलाज चला।
- कानपुर: हैलट अस्पताल में 15 दिन रहे, 3 बोतल खून चढ़ाया गया, लेकिन हालत नहीं सुधरी।
- लखनऊ (PGI): यहां जो हुआ वो बेहद शर्मनाक है। पिता का कहना है कि वे निजी एम्बुलेंस करके रात को पीजीआई पहुंचे, तो वहां डॉक्टरों ने सर्जरी के लिए 2 लाख रुपये एडवांस मांग लिए।
एक मजदूर पिता, जो पहले ही भाइयों, रिश्तेदारों और ईंट-भट्ठा मालिक से उधार लेकर साढ़े तीन लाख रुपये खर्च कर चुका है, वो अचानक 2 लाख कहां से लाए? उन्होंने हाथ जोड़कर कहा, "साहब 50 हजार अभी ले लो, बाकी इंतजाम कर दूंगा," लेकिन वहां से उन्हें मेडिकल कॉलेज जाने को कह दिया गया। और नतीजा? वह बेटी 15-16 घंटे तक मेडिकल कॉलेज के कॉरिडोर में स्ट्रेचर पर पड़ी तड़पती रही।
पोर्टल पर अटकी है 'इंसानियत'
हैरानी की बात यह है कि रेप और एसिड अटैक जैसे जघन्य अपराधों के लिए 'रानी लक्ष्मीबाई सम्मान कोष' जैसी सरकारी योजनाएं बनी हैं। लेकिन इस परिवार को फूटी कौड़ी नहीं मिली।
जब जिला प्रोबेशन अधिकारी से पूछा गया, तो उनका जवाब किसी रोबोट जैसा था— "केस अभी हमारे पोर्टल पर फीड नहीं हुआ है, जब तक पुलिस रिपोर्ट पोर्टल पर नहीं आएगी, मदद नहीं मिल सकती।"
सोचिए, इधर एक बच्ची खून की उल्टियां कर रही है, और उधर अधिकारी 'पोर्टल' अपडेट होने का इंतजार कर रहे हैं। घटना को एक महीना होने को है, एफआईआर दर्ज हो चुकी है (जिसमें 10 दिन की देरी हुई), एक आरोपी जेल भी गया है, फिर भी सरकारी मदद की फाइलें कछुए की चाल चल रही हैं।
सवाल जो सोने नहीं देंगे
- जिम्मेदार कहां हैं? न कोई विधायक पहुंचा, न कोई सांसद और न ही महिला कल्याण का कोई बड़ा अधिकारी। क्या ये लोग सिर्फ वोट मांगने आते हैं?
- रेफर-रेफर का खेल कब तक? एक गंभीर मरीज को एक शहर से दूसरे शहर फुटबॉल की तरह क्यों उछाला जा रहा है? सरकारी एंबुलेंस तक की सुविधा सही से क्यों नहीं मिली?
- गरीब का इलाज नहीं? क्या सरकारी बड़े संस्थानों (जैसे पीजीआई) में पैसे के बिना इमरजेंसी इलाज शुरू नहीं हो सकता?
यह सिर्फ एक खबर नहीं, हमारे समाज के मुंह पर तमाचा है। एक परिवार जो अपना सबकुछ बेचकर न्याय और जीवन की आस लगाए बैठा है, उसे सिस्टम की बेरुखी मार रही है।
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