लखनऊ। यूपी वन निगम (Uttar Pradesh Forest Corporation) के प्रभागीय विक्रय प्रबंधक दविन्दर सिंह (Davinder Singh) के सर्विस रिकार्ड के कागजातों में हेराफेरी साबित हो चुकी है। जांच अधिकारी की रिपोर्ट चीख चीख कर इसकी गवाही दे रही है। फिर भी न जाने जांच अधिकारी की क्या मजबूरी थी कि वह अपनी जांच में किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच सके। यह संकेत देता है कि वन निगम के अफसरों के हाथ बंधे हुए हैं। अब जांच अधिकारी के हाथ किसने बांध रखे हैं। यह विवेचना का विषय है।
मजे की बात यह है कि दविन्दर सिंह विभाग में देवेंदर सिंह (Devendra Singh) के नाम से नियुक्ति पाए थे। पर कागजातों की हेराफेरी ने चमत्कारी ढंग से उनकी सिर्फ पहचान ही नहीं बल्कि जन्मतिथि भी बदली। उनका सर्विस पीरिएड एकाएक दस साल बढ गया और वह सीएम योगी के गृह जनपद में कार्यभार के साथ मुख्यालय में भी पद से नवाजे गए। विभागीय जानकारों का कहना है कि पूर्व मंत्री दारा सिंह चौहान ने जाते जाते दविंदर सिंह पर अपनी मेहरबानी दिखायी। हालांकि प्रबंध निदेशक इसके लिए राजी नहीं थे। बावजूद इसके आला अफसरों के दबाव में वह झुक गए। हैरान करने वाली बात ये है कि दविंदर सिंह की तैनाती मुख्यालय में जिस पोस्ट पर की गयी है वो पोस्ट ही एक्सिस्ट नहीं करती। (Uttar Pradesh Forest Corporation)
चुनाव आचार संहिता के बावजूद ट्रांसफर
विभाग के ही विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि दविंदर सिंह का ट्रांसफर 12 जनवरी 2022 की शाम को किया गया लेकिन डिस्पैच 4 जनवरी 2022 दर्ज किया गया है लेकिन प्रबंध निदेशक संजय सिंह का यह कृत्य विभाग द्वारा भेजे गए मेल की तारीख से साबित हो जायेगा। यदि इसकी निष्पक्ष जाँच कराई जाये तो ये स्वतः स्पष्ट भी हो जायेगा। ऐसे में जब प्रदेश में चुनाव आचार संहिता लागू हो, वन निगम के प्रबंध निदेशक संजय सिंह का ये दुस्साहसिक कदम बताया जा रहा है। हालाँकि प्रबंध निदेशक संजय सिंह पर पहले से भी भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं।
बहरहाल बतौर जांच अधिकारी, मामले की पड़ताल कर रहे महाप्रबंधक एसके शर्मा अपनी जांच में किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके तो प्रकरण की दोबारा जांच करायी गयी। जांच रिपोर्ट फिर शासन को प्रेषित की गयी। पर वह भी फाइलों में ही दबकर रह गई। कार्रवाई शून्य है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दविंदर सिंह (Davinder Singh) की तरफ से अपने नाम और जन्मतिथि परिवर्तन के लिए कोई प्रत्यावेदन नहीं दिया गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि यदि परिवर्तन के लिए प्रत्यावेदन नहीं दिया गया तो फिर यह परिवर्तन कैसे हुआ? क्या विभाग इसकी जांच कराएगा? फिलहाल इस सवाल पर अधिकारी खामोश हैं। (Uttar Pradesh Forest Corporation)
आपको बता दें कि यूपी किरण ने जब इसका खुलासा किया था, तो निगम में हड़कम्प मच गया था। प्रकरण की जाँच के लिए भारतीय वन सेवा के वन निगम (जीएम स्तर ) के अधिकारी सुधीर शर्मा को नियुक्त कर दिया गया था। पर जांच के दौरान पता चला कि आरोपी दविंदर सिंह (परिवर्तित नाम) का शैक्षणिक रिकॉर्ड मुख्यालय से गायब हो चुका है। इसमें ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि मामले की FIR करवाने की जगह आरोपी दविंदर सिंह (Davinder Singh) से ही उसके सारे शैक्षणिक रिकॉर्ड मांगे गये हैं। (Uttar Pradesh Forest Corporation)
दविंदर सिंह अपनी सफाई में कहते हैं कि उनके नाम और जन्मतिथि में गड़बड़ी विभाग की गल्ती से हुई है। उसमें उनका कोई किरदार नहीं है। उन्होंने 1983 में नौकरी शुरू की, इस बीच उनका कई बार स्थानांतरण भी हुआ और कई बार वरिष्ठता सूची भी जारी हुई लेकिन तब-तक दविंदर सिंह (परिवर्तित नाम ) को अपना नाम गलत होने का एहसास तक नहीं हुआ था। यह भी दविंदर सिंह की मंशा पर सवाल खड़े करता है। फिर अचानक 2011 में उनका नाम बदल दिया जाता है। इतना ही नहीं नाम बदलने के साथ-साथ उनकी जन्मतिथि भी 1954 से बदलकर 1964 कर दी जाती है। फिलहाल दविंदर सिंह (Davinder Singh) जन्मतिथि मामले में भी विभाग को ही दोषी मानते हैं। (Uttar Pradesh Forest Corporation)
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