Inside Story: हर बार दलित – पिछड़े मंत्री ही क्यों देते हैं योगी कैबिनेट से इस्तीफा, कहीं ये बड़ी साजिश तो नहीं

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लखनऊ। Inside Story. यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार के मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद दिनेश खटिक ने राजनीतिक बवंडर खड़ा करने साथ ही बीजेपी को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। एक बड़ा सवाल है जो भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकारों को परेशान कर सकता है वो है कि आखिर दलित और पिछड़े समाज के मंत्री ही क्यों ऐसा कदम उठाते हैं। जबकि विवादों तो सवर्ण समाज से आने वाले पूर्व मंत्री महेंद्र सिंह पूर्व मंत्री जय प्रताप सिंह से लेकर वर्तमान सरकार में डिप्टी सीएम बृजेश पाठक तक ने भी सरकार को मुश्किल में डाल दिया था। बावजूद इसके इन सवर्ण मन्त्रियों के इस्तीफा देने की नौबत नहीं आयी।

इस्तीफे के बाद दोहरे संकट में आ गयी थी सरकार 

स्थानांतरण के मुद्दे पर लगातार घिरती जा रही योगी सरकार इस इस्तीफे के बाद दोहरे संकट में आ गई है। हालांकि यह पहली बार नहीं है कि योगी मंत्रिमंडल से किसी ने ऐसे आरोप लगाकर इस्तीफा दिया हो। अगर पिछली और वर्तमान सरकार पर नजर डालें तो करीब पांच कद्दावर मंत्रियों ने इस्तीफा दिया है। लेकिन, इन इस्तीफों में एक बात कॉमन है कि वो सभी दलित और पिछड़े समाज से आने वाले जनप्रतिनिधि हैं और इनके आरोप भी लगभग एक जैसे ही हैं। योगी सरकार के पूर्ण बहुमत से सत्ता में काबिज होने में दलितों और पिछड़ों की भूमिका सबसे बड़ी है। सरकार में उनकी सहभागिता भी अच्छी है।

दलित-पिछड़े ही हैं भाजपा की ताकत

2017 में भारतीय जनता पार्टी लंबे अरसे बाद पूर्ण बहुमत के साथ यूपी की सत्ता पर काबिज हुई थी। इस सरकार में सहयोगी दलों और बागियों की भूमिका काफी बड़ी मानी गई थी। यही कारण था कि भाजपा ने अपने सहयोगी दलों के साथ बागियों को भी मंत्रिमंडल का हिस्सा बनाया था। जिसमें सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर को दिव्यांगजन व पिछड़ा कल्याण विभाग मिला था। इसके अलावा बसपा से आये स्वामी प्रसाद मौर्य को श्रम मंत्री बनाया गया था, वहीं दारा सिंह चौहान वन मंत्री थे तो वहीं धर्म सिंह सैनी को आयुष मंत्री बनाया गया था। इसके अलावा ब्रजेश पाठक भी बसपा छोड़कर आये थे और कानून मंत्री बनाया गया था। ब्रजेश पाठक का कद तो योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल में और बढ़ गया। भाजपा के रणनीतिकार लगातार इस बात को मानते रहे हैं कि उनकी जीत में इन बागियों और सहयोगियों की भूमिका बड़ी थी। जिसका उन्हें खिताब भी मिला।

ओम प्रकाश राजभर ने की थी इस्तीफों की शुरुआत

योगी सरकार के पहले कार्यकाल में कैबिनेट मंत्री रहे सुभासपा के मुखिया ओम प्रकाश राजभर ने बागी होने की शुरुआत की थी। वह लगातार सरकार में उपेक्षित होने का आरोप लगाते रहे। उनके आरोपों से कई बार योगी सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा था। राजभर की बगावत को देखते हुए साल 2019 में ओम प्रकाश राजभर को योगी कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इतना ही नहीं उनके उन साथियों को भी हटा दिया गया था, जो विभिन्न निगमों में थे। राजभर लगातार योगी सरकार पर दलितों और पिछड़ों की अनदेखी किये जाने का आरोप लगाते रहे थे।

ये भी चले राजभर की राह

उसके बाद 2022 के विधानसभा चुनाव की आहटों के बीच योगी कैबिनेट से स्वामी प्रसाद मौर्या, दारा सिंह चौहान और धर्म सिंह सैनी ने भी बगावत करते हुए इस्तीफा दे दिया। इनके समर्थन में इनके कई साथी भी बगावत पर उतर आये। सबने एक स्वर में योगी सरकार पर दलितों और पिछड़ों की अनदेखी किये जाने का आरोप लगाया। हालांकि, दावा किया गया कि इनके साथ दलित और पिछड़े समाज के कई कद्दावर बीजेपी नेता बगावत कर सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सबने भाजपा का साथ छोड़ने के बाद सपा का दामन थाम लिया और 2022 के विधानसभा में उतरे। इनमें से ओम प्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान चुनाव जीतने में सफल हुए लेकिन धर्म सिंह सैनी और स्वामी प्रसाद मौर्य को हार का सामना करना पड़ा।

योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल में भी इस्तीफा जारी, निशाने पर अब एक दलित

सरकार के दूसरे कार्यकाल में अभी 100 दिन से ज्यादा ही बीते हैं कि पहला इस्तीफा आ गया है। लेकिन, इस बार इस्तीफा दलित वर्ग से आने वाले दिनेश खटिक ने दिया है। उन्होंने अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि उनके दलित होने की वजह से बातें नहीं सुनी जातीं हैं। उन्होंने अपना इस्तीफा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को भेजा है। जिसमें उन्होंने कहा है कि दलित होने के कारण उनकी अनदेखी की जाती है। ऐसे में जब बतौर मंत्री उनकी बात अधिकारी नहीं सुनते हैं तो दलित समाज की क्या स्थिति होगी। दिनेश खटिक के ये आरोप पुराने साथियों के आरोपों से पूरी तरह मेल खा रहे हैं।

ये सवाल सरकार की बढ़ा रही मुश्किलें

दिनेश खटीक के इस्तीफे के बाद कई सवाल खड़े हो रहे हैं। यह इस्तीफा दबाव बनाने की सियासत है या कुछ और हकीकत है। क्योंकि, ओम प्रकाश राजभर पर यह लगातार आरोप लगता रहा है कि वह दबाव की सियासत करते हैं। पहले भाजपा और अब वह अपने सहयोगी अखिलेश यादव पर भी वार करते आ रहे हैं। उनकी अब बसपा से नजदीकी बताई जा रही है। वहीं दिनेश खटीक के इस्तीफे से भी यह सवाल खड़े हो रहे हैं कि कहीं यह दबाव की राजनीति तो नहीं है या हकीकत कुछ और है।

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