पीएम मोदी के लक्षद्वीप दौरे के बाद हिंदुस्तान व मालदीव के बीच पर्यटन को लेकर बहस तेज हो गई है. किंतु मात्र 300 वर्ग किमी क्षेत्रफल और 5 लाख तक की जनसंख्या वाले मुल्क में पर्यटकों द्वारा उत्पन्न कचरे के निपटान के लिए एक कृत्रिम द्वीप बनाया गया है। इसे थिलाफुशी द्वीप के नाम से जाना जाता है। मगर, इसका असर दुनिया पर पड़ रहा है।
थिलाफुशी मालदीव की राजधानी माले से कुछ किलोमीटर दूर समुद्र के पास एक उथली जगह थी। दूसरी जगह जाने के लिए इसी क्षेत्र से होकर गुजरना पड़ता है। इसलिए सबसे ज्यादा कचरा यहीं पैदा होता है. नतीजा यह हुआ कि इस इलाके में ढेर सारा कूड़ा जमा होने लगा. करीब 124 एकड़ में विशाल कूड़े का टापू बन गया है।
मालदीव सरकार ने द्वीप पर कचरा प्रबंधन का काम बांग्लादेशी शरणार्थियों को दिया है। ये लोग नारकीय हालात में जी रहे हैं. इस द्वीप पर पूरे देश से कूड़ा लाया जाता है। इसे या तो जमीन के अंदर दफना दिया जाता है या जला दिया जाता है। पर्यावरणविदों का आरोप है कि इसका असर पर्यावरण के साथ-साथ मानवाधिकारों पर भी पड़ता है.
मालदीव की वजह से दुनिया भर में फैल रही है गंदगी!
आपको बता दें कि मालदीव में कचरा न केवल हिंद महासागर बल्कि आसपास के कई देशों को भी प्रभावित कर रहा है। एक एनजीओ ने दावा किया है कि थिलाफुशी के कचरा द्वीप से कचरा बहकर कई देशों के तटों तक पहुंच गया है।
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