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डेस्क। भारत पर्वों और उत्सवों का देश है। यहां के हर उत्सव में समस्त प्राणियों की कल्याण की भावना निहित होती है। ऐसा ही एक पर्व है भगवान जगन्नाथ यात्रा का। जगन्नाथ अर्थात संसार के नाथ। जगन्नाथ श्री कृष्ण का ही एक नाम है। सनातन परंपरा के अनुसार आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ की यात्रा निकाली जाती है। आजकल यह यात्रा पूरी दुनिया में निकाली जाती है। माना जाता है कि जो भक्त श्री जगन्नाथ जी के साथ बलभद्र और सुभद्रा जी को रथ पर विराजमान कर यात्रा में किसी भी रूप में शामिल होते हैं, उन्हें मोक्ष मिलता है और वे जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं। इसी भक्ति- भावना के साथ जगन्नाथ जी का रथ असंख्य भक्तों द्वारा खींचा जाता है।

शास्त्रों के अनुसार पुष्य नक्षत्र, नक्षत्रों का राजा है। पुष्य नक्षत्र में किया गया कार्य अक्षय फल प्रदान करता है। इस साल 7 जुलाई को रथयात्रा महोत्सव के दिन पुष्य नक्षत्र का संचरण दिन-रात है। इसलिए भगवान जगन्नाथ की यात्रा में शामिल होने वाले भक्तों को अक्षय पुण्य मिलेगा। ऐसा विश्वास है कि रथ यात्रा में सम्मिलित होकर की गई सेवा भक्ति भक्तों के भाग्य को चमका देता है।

उल्लेखनीय है कि जगन्नाथ पुरी में होने वाली भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में सभी भक्त शामिल नहीं हो पाते हैं। इसलिए वे अपने नगर या ग्राम में उसी प्रकार रथ यात्रा का आयोजन कर पुण्य के भागी बनते हैं। इस दिन भगवान श्री बलराम जी, कृष्णजी तथा सुभद्रा देवी की भक्ति भाव से आराधना करनी चाहिये। इस दिन भगवान जगन्नाथ को भीगी हुई मूंग, मटर, चना तथा ताम्बूल, फल, नैवेद्य भगवान पर अर्पण करने का विधान है। इस दिन सामूहिक रूप से भगवान की मूर्ति के समीप कीर्तन भजन करना चाहिए।  इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर अपनी श्रद्धा के अनुसार उन्हें दान देकर आशीर्वाद लेना फलदाई होता है।

वैष्णव परंपरा के अनुसार आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को सुभद्रा देवी, श्री कृष्ण और बलराम जी को रथ पर विराजमान कर गाजे-बाजे के साथ नगर या गांव में यात्रा निकालना शुभ होता है। रथयात्रा में सम्मिलित होकर भगवान का जय-जयकार एवं नाम-जप किया जाता है। सनातन मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत रखने वाले भक्तों की स्वयं शेषनाग रक्षा करते हैं और उन्हें सब ऐश्वर्य प्रदान करते हैं। वर्तमान में इस यात्रा की लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है। 

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