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धर्म डेस्क। सनातन धर्म में हर तिथि का अपना है। इसमें तृतीया तिथि विशेष महत्व रखती है। वर्ष में 3 तृतीया या तीज तिथि पूरे देश में बड़े ही हर्ष के साथ मनाई जाती हैं। इनमें हरियाली तीज, हरतालिका तीज और कजरी तीज शामिल है। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजरी तीज मनाई जाती है। इस पर्व पर सुहागिन महिलाएं पति की दीर्घायु एवं स्वस्थ जीवन के लिए व्रत रखते हैं और भगवान शिव और मां पार्वती का विशेष पूजन करती हैं। इस बार कजरी तीज 22 अगस्त को है।

ज्योतिषविदों के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि 21 अगस्त को शाम 5 बजकर 10 मिनट से शुरू हो रही है और इसका समापन 22 अगस्त को दोपहर 1 बजकर 50 मिनट पर होगा। इसलिए उदयातिथि के अनुसार कजरी तीज 22 अगस्त गुरुवार के दिन मनाई जाएगी। इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 5 बजकर 50 मिनट से लेकर सुबह 7 बजकर 30 मिनट के बीच रहेगा।

कजरी तीज को लेकर लोक समाज में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार कजरी तीज का व्रत सबसे पहले मां पार्वती ने रखा था। इस पर्व पर सुहागिन महिलाएं पति की दीर्घायु एवं परिवार में सुख-समृद्धि आदि की कामना से व्रत रखती हैं। कजरी तीज का व्रत करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। जीवन में आ रही सभी समस्याएं दूर होती हैं। चंद्रदेव के दर्शन और अर्घ्य देने के बाद ही कजरी तीज के व्रत प्रारंभ किया जाता है।

कजरी तीज का व्रत कठिन होता है। सूर्योदय से पहले स्नान कर व्रत का संकल्प लिया जाता है और पूरे दिन उपवास किया जाता है। सूर्योदय से पहले मिठाई, फल आदि खाया जाता है। पूजा के शुभ मुहूर्त से पहले मिट्टी या गोबर से पूजा स्थल को लीपकर चौकी तैयार की जाती है। पूजा की चौकी पर शिव-पार्वती और तीज माता की फोटो रखकर उनकी विधिपूर्वक पूजा की जाती है। सत्तू का भोग लगाकर नीमड़ी माता की पूजा कर उन्हें चूनर चढ़ाई जाती है। इन सारी क्रियाओं को करने के बाद चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है।  

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