कृषि कानूनों को लेकर सरकार और किसानों के बीच गतिरोध जारी है (kisan andolan) अब तक आठ दौर की वार्ता से भी कोई हल नहीं निकल सका। किसान और सरकार दोनों अपनी-अपनी जिद पर अड़े हुए हैं। सरकार नए कृषि कानूनों को किसानों के लिए फायदे वाला बता रही है, जबकि किसान इसे खेती को कारपोरेट सेक्टर के लिए लूट का साधन बता रहे हैं। हाल ही में अडानी और अंबानी ग्रुप ने भी ब्यान जारी कर कह दिया की कृषि व्यापार से उनका कोई लेना-देना नहीं है। ऐसे में सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि जब किसान और कारपोरेट दोनों नए कृषि कानूनों को नहीं चाहते तो वह किसके लिए इतना विरोध झेल रही है।
अब यहां पाए सवाल उठता है की जब नए कृषि कानूनों को किसान और कॉरपोरेट दोनों नहीं चाहते हैं तो फिर सरकार इस पर क्यों अड़ी हुई है। अब तो सरकार के सहयोगी दल भी इस मुद्दे पर सरकार के रुख से असहमति जता रहे हैं। राजग में भाजपा के सहयोगी दल जदयू प्रवक्ता केसी त्यागी का का कहना है कि जेडीयू को कृषि कानून को लेकर सरकार से शिकायत है। (kisan andolan) सरकार कृषि कानून सहयोगी पार्टियों को विश्वास में लेकर नहीं लाई। सरकार को सहयोगी दलों को भी विश्वास में लेना चाहिए था।
सरकार को कृषि कानूनों पर किसानों से खुलकर संवाद करना चाहिए। सरकार को बताना किये कि यह कानून किसके हित में है। सरकार को अब ज़िद छोड़ कर तीनों कानून वापस ले लेने चाहिए और कृषि सुधार, न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी और अन्य किसानों की समस्याओं के लिए जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने सुझाया है, एक विशेषज्ञ समिति का गठन करके समस्या के समाधान की ओर बढ़ना चाहिए। आखिर में सरकार के प्रति जनता (kisan andolan) की भी अपेक्षाएं होती हैं।
केंद्र सरकार के अभी तक के रुख से तो यही लगता है कि वह फसल और खेत को कॉरपोरेट के हवाले करना चाहती है। सरकार ने जितनी आसानी से आवश्यक वस्तु अधिनियम को रद्द कर मुनाफाखोरों को असीमित भंडारण की सुविधा दे दी है उससे तो यही लगता है कि उसके लिए कारपोरेट हित ही सर्वोपरि है। कारपोरेट घरानों क अब तक तक का इतिहास तो मुनाफाखोरी वाला ही रहा है। इसलिए किसान खेती-किसानी में उनका दखल नहीं चाहता है।
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