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कोयले के कारोबार और सरकारी ठेकों में दखल के साथ ही जिला जेल में मुख्तार अंसारी के गुर्गों की पिटाई चेतगंज थाने के हिस्ट्रीशीटर अवधेश राय की हत्या की अहम वजह बने थे।

हत्या सहित अन्य आपराधिक आरोपों में दर्ज उन्नीस मुकदमों के आरोपी रहे अवधेश राय का दबदबा वाराणसी से गाजीपुर होते हुए पूर्वांचल में तेजी से बढ] रहा था।

नब्बे के दशक में अंसारी गिरोह ने बनारस में पैर पसारना शुरू किया तो उनकी राह में दबंग किस्म के अवधेश राय एक बड़ा कांटा थे। अंसारी गिरोह बनारस के व्यापारियों से रंगदारी मांगता था तो अवधेश राय रक्षक बनकर खडे़ हो जाते थे।

परिणामस्वरूप, माफिया ने अवधेश राय को रास्ते से हटाने की साजिश रचकर प्लानिंग करके 3 अगस्त 1991 को उनकी हत्या उनके घर के सामने ही कर दी गई।

दरअसल साल उन्नीस सौ नब्बे में अवधेश राय और एक पूर्व एमएलसी के बडे़ भाई वाराणसी की जला जेल में बंद थे। उस दौरान अंसारी के गिरोह के कुछ सदस्य भी इसी जेल में थे। पूर्व एमएलसी के बडे़ भाई से अंसारी के गुर्गों से किसी बात पर नोकझोंक हुई और बात मारपीट तक पहुँच गए। पूर्व एमएलसी के बडे़ भाई ने अवधेश राय से मदद मांगी। इस पर अवधेश राय ने अंसारी के गुर्गों की सलाखों के पीछे खूब कुटाई की।

इस घटना के बाद अंसारी इसकदर खार खाया कि अब अवधेश को ठिकाने लगाने की ठान ली थी और रेकी के जरिए गोली मारकर अब उसकी की हत्या कर दी गई।

 

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