img

mahakumbh 2025: अघोरी साधु भारतीय तांत्रिक परंपरा का एक रहस्यमई हिस्सा हैं। इन्हें अपने अद्भुत जीवनशैली और गहन साधना के लिए जाना जाता है। अघोरी साधुओं का जीवन और मृत्यु के पार एक गहरी समझ पर आधारित होता है। वे ज्यादातर श्मशान घाट में रहते हैं और वहां की बुरी ऊर्जा को अपनी साधना का हिस्सा मानते हैं। अघोरी बनने के लिए तीन मुश्किल दीक्षाओं का पालन किया जाता है, जो कि बहुत कठिन होती हैं। आइए इन दीक्षाओं के बारे में जानते हैं-

पहला पड़ाव

हरित दीक्षा अघोरी साधु बनने की पहली चरण है। इस प्रक्रिया में गुरु अपने शिष्य को एक खास मंत्र देते हैं, जिसे शिष्य को निरंतर जाप करना होता है। यह मंत्र शिष्य के लिए बहुत अहम होता है और इसके जाप से शिष्य की एकाग्रता में वृद्धि होती है। ये दीक्षा शिष्य को आध्यात्मिक ऊर्जा और मानसिक मजबूती प्रदान करती है।

दूसरा पड़ाव

शिरीन दीक्षा में शिष्य को तंत्र साधना की कई विधियां सिखाई जाती हैं। इस दौरान शिष्य को श्मशान घाट में तपस्या करनी होती है। यहां पर उसे प्राकृतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जैसे कि सांप, बिच्छू और अलग अलग मौसम की समस्याएं। ये दीक्षा शिष्य की मानसिक और शारीरिक सहनशक्ति को परखती है। इससे उनका डर निकल जाता है।

सबसे कठिन और अंतिम पड़ाव

रंभत दीक्षा अघोरी बनने की आखिरी और सबसे कठिन परीक्षा है। इस दीक्षा में शिष्य को अपने जीवन और मृत्यु का अधिकार अपने गुरु को सौंपना होता है। ये प्रक्रिया शिष्य के अहंकार को खत्म करने और उसे गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण की ओर ले जाती है। इस दौरान यदि गुरु कोई आदेश देता है, तो शिष्य को बिना किसी प्रश्न के उसे मानना पड़ता है। चाहे वो कितना भी कठिन या जोखिम भरा क्यों न हो।

 

--Advertisement--