कोरोना काल में कांग्रेस की मनरेगा योजना पर मोदी सरकार का भरोसा, अब…

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नई दिल्ली। कोरोना संकट के समय ग्रामीण इलाकों में गरीब मजदूरों मजदूरों को मनरेगा का बहुत बड़ा सहारा मिला है। अब मनरेगा योजना को सरकार शहरी क्षेत्रों में लाने पर सरकार विचार कर रही है। बता दें लॉकडाउन में बेरोजगार हुए शहरी मजदूरों को इसके तहत रोजगार मिलेगा।

वहीं शहरी इलाकों में मनरेगा लागू होने से एक बड़ी आबादी को रोजगार मिल जायेगा। क्योंकि देश में बड़े पैमाने पर शहरी इलाकों में भी मजदूर रहते हैं, जिन्हें कोरोना संकट की वजह काम- धंधा नहीं मिल पा रहा है। जानकारी के मुताबिक सरकार इस योजना को शुरुआती चरण में छोटे शहरों में लागू करने पर विचार कर रही है। इसके पीछे का सोंच यह है कि बड़े शहरों में सामान्यतया प्रशिक्षित या जानकार कामगारों की जरूरत बहुतायत मात्रा में होती है। जबकि छोटे शहरों में दिहाड़ी कामगारों के लिए प्रशिक्षण की जरूरत नहीं होती है। सरकार शुरुआत में इस योजना पर 3,5000 करोड़ रुपये खर्च करने की सोच रही है। सरकार इस पर पिछले साल से ही काम कर रही है।

जिसके चलते शहरों में मनरेगा लागू होने से अर्थव्यवस्था को रफ्तार मिल सकेगी। और अगस्त में शहरी बेरोजगारी की दर 9.83 फीसदी दर्ज की गई है, जबकि ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी दर का आंकड़ा 7.65 फीसदी था। जुलाई में शहरी बेरोजगारी की दर 9.15 फीसदी थी, और ग्रामीण बेरोजगारी की दर 6.6 फीसदी थी।

केंद्र सरकार ने बजट 2020-21 में मनरेगा के लिए 61,500 करोड़ रुपये का आवंटन किया था। लेकिन कोरोना संकट को देखते हुए सरकार ने फिर मनरेगा के लिए अलग से 40 हजार करोड़ रुपये का आवंटन किया है। हाल ही में भारत सरकार ग्रामीण मंत्रालय ने मनरेगा मजदूरों की मजदूरी बढ़ाकर 202 रुपये प्रतिदिन कर दी है। मनरेगा योजना में मजदूरों को अधिकतम 100 दिन तक रोजगार की गारंटी दी जाती है।

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