आज कल 2024 लोकसभा इलेक्शन का हर जगह शोर है। मगर इस दौरान कुछ ऐसी बात भी सामने आ रही है जिसने सबको सोचने पर मजबूर कर दिया है। जी हां, ये खबर है पलायन की।
पलायन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 20 ज्यादा ऐसे गांव हैं, जिनमें आजादी के बाद पहला ऐसा मौका आया है कि इन गांव में वोट नहीं डाले जाएंगे। इसके पीछे पलायन सबसे बड़ा कारण है। इन गांव में अब कोई नहीं रहता है। इन गांव को निर्जन घोषित कर दिया गया है।
बता दें कि पलायन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, निर्जन घोषित हो चुके ये गांव अल्मोड़ा, टिहरी, चंपावत, पौड़ी गढ़वाल, पिथौरागढ़ और चमोली जनपद के हैं। पलायन आयोग की फरवरी 2023 में जारी हुई दूसरी रिपोर्ट में बताया गया था कि 2018 से 2 हज़ार 22 तक उत्तराखंड की छह हज़ार 436 ग्राम पंचायतों में अस्थाई पलायन हुआ है और 3 लाख से अधिक लोग रोजगार के लिए अपने गांव छोड़कर बाहर चले गए हैं।
हालांकि इन लोगों का बीच बीच में गांव आना जारी है। इस अवधि में राज्य की 2067 ग्राम पंचायतों में स्थायी पलायन भी हुआ है। लोग रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य की तलाश में अपने गांव से गए और कभी वापस नहीं लौटे। कई लोग अपनी पुश्तैनी जमीनों को बेचकर यहां से चले गए तो कई लोग भूमि बंजर छोड़कर यहां से चले गए। सर्वाधिक 80 ग्राम पंचायतें अल्मोड़ा जिले में स्थायी पलायन से वीरान हो गई हैं।
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