स्नो लेपर्ड यानी बर्फीला तेंदुआ, जिसे दुर्गम स्थान और कठिन परिस्थिति में भी शिकार पर तेजी से अचूक निशाना साधने की महारथ हासिल है। भारतीय सेना ने भी जिस तरह इस ऑपरेशन को अंजाम दिया, वह किसी बर्फीले तेंदुए जैसी हरकत से कम नहीं थी। इस ऑपरेशन के लिए अगस्त, 2020 की शुरुआत से तैयारी की गई। सबसे पहले उन रणनीतिक पहाड़ियों की पहचान की गई जिन्हें हासिल करना था जैसे कि ब्लैक टॉप, गुरुंग हिल, रेजांग ला, मगर हिल, रेचिंग ला, हेलमेट टॉप।
ऑपरेशन की रणनीति बनाई गई
भारतीय थलसेना के प्रमुख जनरल एमएम नरवणे की अगुवाई में उत्तरी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल वाईके जोशी, कोर कमांडर हरजिंदर सिंह, डिविजनल कमांडर और वास्तविक नियन्त्रण रेखा पर तैनात लोकल कमांडर, स्पेशल फ्रंटियर फ़ोर्स की टीमों के साथ समन्वय करके इस ऑपरेशन की रणनीति बनाई गई। सैन्य वार्ताओं में चीन की अकड़ खत्म न होते देख ‘ऑपरेशन स्नो लेपर्ड’ को अंतिम रूप दिया गया।इस ऑपरेशन को अंजाम तक पहुंचाने की पहली शर्त यही थी कि इसकी चीनी सेना को जरा भी भनक न लग पाए।
हर चोटी पर तिरंगा फहरने के बाद लगी भनक
इस बीच चीनी सेना ने जब 29/30 अगस्त की रात में पैन्गोंग झील के दक्षिणी इलाके की थाकुंग चोटी पर घुसपैठ की कोशिश की तो भारतीय सेना ने उन्हें खदेड़ दिया। सेना को ‘ऑपरेशन स्नो लेपर्ड’अंजाम देने का यही मौका सही लगा। इसके बाद इस ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए ऐसी टीम तैयार की गई जिनके पास ऊंची पहाड़ियों पर तैनाती या युद्ध लड़ने का अनुभव है।
इसमें स्पेशल फ्रंटियर फ़ोर्स की टीम को भी शामिल किया गया। इस खास टीम को दो दिन के अन्दर ब्लैक टॉप, गुरुंग हिल, रेजांग ला, मगर हिल, रेचिंग ला, हेलमेट टॉप को अपने नियंत्रण में लेने का टास्क दिया गया।इन चोटियों को अपने नियंत्रण में लेते वक्त सैन्य टीमों की सुरक्षा के लिए भारतीय वायुसेना के फाइटर जेट लगातार आसपास पेट्रोलिंग करते रहे। यह ऑपरेशन इतना गोपनीय रहा कि चीनियों को हर चोटी पर तिरंगा फहरने के बाद ही भनक लग सकी।
ऊंची पहाड़ियों से थी चीन पर नजर
इस ऑपरेशन में भारतीय सेना ने पैंगोंग झील के दक्षिण में करीब 60-70 किलोमीटर तक का पूरा क्षेत्र अपने अधिकार में लेकर चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को चौंका दिया।चीन से 1962 के युद्ध से पहले यह पूरा इलाका भारत के ही अधिकार-क्षेत्र में था लेकिन युद्ध के दौरान रेचिन-ला और चुशुल की लड़ाई के बाद दोनों देश की सेनाएं इसके पीछे चली गई थीं और इस इलाके को पूरी तरह खाली कर दिया गया था।
इसके बाद से इन पहाड़ियों पर दोनों देश अब तक सैन्य तैनाती नहीं करते रहे हैं।1962 के बाद यह पहला मौका था जब भारत ने चीनियों को मात देकर पैंगोंग के दक्षिणी छोर की इन पहाड़ियों को अपने नियंत्रण में लिया। ऑपरेशन पूरा होने के बाद भारतीय सेना ने पैन्गोंग झील के दक्षिणी और उत्तरी किनारों की ऊंची पहाड़ियों पर अपनी तैनाती बढ़ा दी जहां से चीन की गतिविधियों पर सीधी नजर रखी जा सके।
सीक्रेट फोर्स की थी अहम भूमिका