नई दिल्ली। चीन मसले पर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कड़ा रुख अपनाते हुए आर्मी को स्थिति के हिसाब से निर्णय लेने की खुली छूट देने के साथ ही यह भी निर्देश दिया है कि LAC पर चीन के आक्रामक होने पर उसे उसी की भाषा में जवाब दिया जाये। युद्ध स्तर की चेतावनी जारी करते हुए यह भी कहा गया है कि जरूरत पड़ने पर सैनिक हथियारों का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के साथ रविवार को हुई शीर्ष स्तरीय बैठक में सैन्य बलों के प्रमुख (CDS) जनरल विपिन रावत, आर्मी चीफ एमएम नरवणे, नेवी चीफ एडमिरल करमबीर सिंह और एयरफोर्स चीफ आरकेएस भदौरिया शामिल हुए। रक्षामंत्री को बताया गया कि पूर्वी लद्दाख और अन्य क्षेत्रों में किसी भी चीनी दुस्साहस का जवाब देने के लिए भारतीय सेना के तीनों अंग पूरी तरह तैयार हैं।
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रक्षामंत्री ने शीर्ष सैन्य अधिकारियों से भूमि सीमा, हवाई क्षेत्र और रणनीतिक समुद्री गलियारोंं में चीनी गतिविधियों पर सख्ती से निगरानी रखने के लिए कहा। रक्षामंत्री ने बैठक में चीनी सेना के किसी भी आक्रामक व्यवहार से निपटने के लिए सेनाओं को पूर्ण स्वतंत्रता दी। आर्मी को स्थिति के हिसाब से फैसले लेने की खुली छूट देने के साथ ही यह भी निर्देश दिए गए हैं कि एलएसी पर चीन के आक्रामक होने पर उसे उसी की भाषा में जवाब दिया जाए। जरूरत पड़ने पर सैनिक हथियारों का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
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सेना के सूत्रों के मुताबिक अब वास्तविक नियंत्रण रेखा पर किसी भी तरह की आक्रामकता का मुकाबला करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली रणनीति पर कमांडर स्तर पर फैसला लिया जा सकेगा। दरअसल 15/16 जून की रात को गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ हुई खूनी झड़प के दौरान भारतीय सैनिक नियमों के तहत हाथ बंधे होने के कारण हथियार होने के बावजूद इस्तेमाल नहीं कर पाए थे। इस पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 18 जून को एक ट्वीट करके कहा था कि गलवान घाटी में शहीद हुए जवान निहत्थे नहीं थे। उनके पास हथियार थे।
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विदेश मंत्री ने चीन से समझौते का हवाला देते हुए कहा था कि 1996 और 2005 में चीन के साथ भारत का समझौता हुआ था, जिसमें झड़प के दौरान हथियारों के इस्तेमाल की इजाज़त नहीं है। सीमा पर तैनात जवान हमेशा हथियारों से लैस रहते हैं। 15 जून को भी गलवान में भारतीय सैनिकों के पास हथियार थे लेकिन समझौते के तहत इस्तेमाल नहीं किया गया था।
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