img

जब-जब भी किसी मुल्क पर केवल धर्म और राष्ट्रवाद के फर्ज़ी नारों के साथ सत्ताओं ने अपने पंजे गड़ाये हैं, उसकी सबसे बड़ी ताकत उन्माद और प्रोपेगैंडा में ही समाहित रही है। इतिहास गवाह है कि ऐसी सत्ताओं/शासकों ने कभी भी अपने देश और समाज का भला नहीं किया है। ऐसे देश या तो युद्ध में या आंतरिक गृहयुद्ध में नष्ट होकर अंततः आर्थिक व सामाजिक रूप से पतन को प्राप्त हुए हैं।

भारत के मीडिया को आगे करके जिस तरह से युद्ध का उन्माद और धार्मिक व जातीय संघर्ष का माहौल बना दिया गया है, उस पर तर्कसंगत बात कोई सुनना नहीं चाहता है। भारत-पाक में अगर अब कोई युद्ध हुआ तो वह परमाणु युद्ध में तब्दील हो जाएगा क्योंकि पाकिस्तान में भी कम जाहिल नेता नहीं हैं। परमाणु बम कोई पानी से भरा गुब्बारा‌ नहीं है..यह बम पाकिस्तान के विनाश के साथ-साथ भारतीय भू-भाग के एक बड़े हिस्से को भी दीर्घकालिक रूप से भयावह तरीके से नुकसान पहुंचायेगा। यानी हमलावर भी अपना बहुत कुछ नष्ट कर लेगा।

युद्ध का पागलपन हिरोशिमा और नागासाकी के रूप में  हमारे सामने है। वो लोग भाग्यशाली थे जो परमाणु  बम गिराए जाने के बाद सेकेंड के भी लाखवें हिस्से में भाप बनकर उड़ गये....लेकिन जो बचे वो मौत की भीख मांगते रहे और तड़प-तड़प कर कैंसर से मर गये और आज भी हिरोशिमा-नागासाकी में विकिरण के स्तर बहुत अधिक है। एक 20-Kt परमाणु विस्फोट से लगभग 12.8 किलोमीटर के भीतर रहने वाले सारे लोग तुरंत ही मर जायेंगे और इमारतें राख हो जायेंगी लेकिन इस विस्फोट से निकलने वाली उष्मा व आग कई मील दूर तक सब कुछ तहस-नहस कर देगी। इसके अलावा विद्युत चुंबकीय स्पंद (EMP) के कारण इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम्स नष्ट हो जायेंगे और कई मील दूर तक बम के रेडियोधर्मी पदार्थ के भारी कण तत्काल या निकटवर्ती क्षेत्र में गिरेंगे।  इसके बाद ये महीन कण नीचे गिरने से पहले हवा के रूख के साथ मीलों तक उड़ेंगे। बहुत महीन कण जल वाष्प/बादलों के साथ मिलकर रेडियोधर्मी वर्षा के रूप में दूर तक सफर तय करेंगे।  यानी दिल्ली से लाहौर की हवाई दूरी 418 किलोमीटर है। अगर "चैनलीय बछड़ों" की दुलत्तियां और सब्जी मंडी टाइप खबरों से प्रभावित सत्ता ने लाहौर पर हमला किया तो पंजाब से लेकर दिल्ली तक का एक बड़ा भू-भाग रेडिएशन की भयावह चपेट में आएगा। अगर हवाओं का रूख इसी तरफ हुआ तो मौत की यह हवा और भी विकराल होगी। 

याद करिए वर्ष, 1986 में यूक्रेन के चेरनोबिल में एक दुखद घटना घटी थी। इस घटना के  कुछ ही दिनों बाद उत्तरी यूरोप में एक विस्तृत क्षेत्र में रेडियोधर्मी वर्षा हुई थी जिससे  स्कैंडिनेविया से स्कॉटलैंड तक,  कुम्ब्रिया से लेकर वेल्स तक सब जगहों पर मौत के रेडियोएक्टिव बादलों ने वर्षा की थी यानी कि चेरनोबिल घटना स्थल से करीब 1,700 मील से अधिक की दूरी तक यानी 2 720 किलोमीटर तक यह भयावह असर देखा गया और आज भी यहां स्किन कैंसर, ल्यूकेमिया, थायरॉयड कैंसर, स्तन कैंसर और अनेक  प्रकार के कैंसर लोगों की जान ले रहा है। जबकि दिल्ली से इस्लामाबाद की दूरी करीब 801.07 किलोमीटर है और परमाणु बम की विभीषिका "लश्कर ए नोएडा मीडिया" के "मुंहद्वार" तक भी होगी.. बचेगा कोई नहीं..!!!
रेडियोधर्मी विकिरण  इतना खतरनाक होता है कि इसके उच्च स्तर के संपर्क में आने से बाल झड़ना, मुंह और मसूड़ों से खून आना, आंतरिक रक्तस्राव और रक्तस्रावी दस्त, गैंग्रीन अल्सर, उल्टी, बुखार, प्रलाप और टर्मिनल कोमा जैसी बीमारियां  हो जाती हैं और इनका कोई प्रभावी उपचार नहीं है और कुछ ही दिनों में तड़प कर मृत्यु हो जाती है। परमाणु बम के हमलों से जो बचते हैं, उन्हें कई जटिलताओं का सामना करना पड़ता है। गर्भवती महिलाओं के गर्भपात होने या कई तरह की विकलांगता वाले बच्चों को जन्म देने की संभावना होती है।  
हिरोशिमा-नागासाकी में दीर्घकालिक मौतों का सटीक अनुमान लगाना संभव नहीं है, क्योंकि बड़े पैमाने पर रिकॉर्ड नष्ट कर दिए गए, जनसंख्या में बदलाव हुए और अमेरिका द्वारा परमाणु प्रभावों के अध्ययन पर सामान्य सेंसरशिप लगाई गई। हिरोशिमा पर बम गिराए जाने के बाद पहले घंटों में कम से कम 75,000 लोग मारे गए, जिनमें से दिसंबर 1945 तक लगभग 140,000 लोग मारे गए। 1950 के अंत तक मरने वालों की संख्या लगभग 200,000 तक पहुँच गई। वर्तमान में परमाणु बम अब और भी ज्यादा घातक बनाये गये हैं। परमाणु बम का हमला भारत और पाकिस्तान दोनों के ही जलवायु परिवर्तन को घातक रूप से बदल देगा। जिसका असर जलीय श्रोतों से लेकर खाद्यान्न उत्पादन  पर होगा और करोड़ों लोग भुखमरी का सामना करेंगे।

देश के मौजूदा नेतृत्व को देश की जनता ने सिर-माथे पर बैठाकर आंखों में रखा..! अगर यह नेतृत्व शिक्षा, रिसर्च, नवीन अन्वेषण पर अर्थव्यवस्था पर ध्यान देता तो शायद आज किसी भी देश को आंख दिखाने की हिम्मत न पड़ती। क्योंकि वर्तमान युग आर्थिक ताकत के आगे नतमस्तक है वरना परमाणु बम तो पाकिस्तान जैसे फटीचर भी रखते हैं। आर्थिक ताकत स्वत: ही सैन्य मजबूती प्रदान करती है।‌ चीन आपके सामने एक बड़ा उदाहरण है। चीन ने जितना निवेश सेना पर किया कमोबेश उतना ही शिक्षा पर भी और परिणाम सामने हैं। 

2024 में चीन की अर्थव्यवस्था लगभग 18.7 ट्रिलियन डॉलर की है और वह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जबकि IMF के अनुसार, भारत की जीडीपी वर्तमान में 4.3 ट्रिलियन डॉलर है..!! है भी कि नहीं यह भी संदेहास्पद है क्योंकि 85 करोड़ जनता पांच किलो अनाज पर है और सब कुछ संविदा पर है, ऐसा तो 4.3 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था वाले देश में नहीं होता!! धूलधूसरित पासपोर्ट रैंकिंग और रसातल में मुद्रा...लेकिन "नोएडा मीडिया रिजर्व बैंक के गवर्नर" की भूमिका में है !!! 

मैं वर्ष 2000 में दिल्ली में एक बड़ी हिंदी मैगजीन में कार्यरत था और सेना व सुरक्षा एजेंसियों में अच्छे सूत्र थे और आज भी कुछ हैं, उनके अनुसार पहले भी पाकिस्तान के खिलाफ जबरदस्त सैन्य और अन्य तरह की कार्रवाइयां हुआ करती थीं लेकिन न भारत हल्ला मचाता था न पाकिस्तान स्वीकार करता था कि वो कूटा गया है..!! सतलुज नदी के जल को ही हथियार बनाना था तो उसके लिए अब तक किया क्या गया? एक संदर्भ और है अगर इधर सतलुज है तो तिब्बत से अनेक नदियां निकलती हैं जो भारत की ओर आती हैं और वहां चीन है..!! 

फिलहाल उन्माद और पागलपन का कोई इलाज नहीं है..जो करना है गोपनीय तरीके से करें हल्ला मचा कर सैन्य आपरेशन नहीं हुआ करते और परमाणु बम अगर चला तो न चलाने वाला सुरक्षित रहेगा न जिस पर चलेगा वह सुरक्षित रहेगा.!!
 

(पवन सिंह के फेसबुक से साभार)

--Advertisement--