शाहजहांपुर। उत्तर प्रदेश के जनपद शाहजहांपुर की तहसील कलान के गांव खजुरी में परमवीर चक्र (Param Vir Chakra) विजेता नायक यदुनाथ सिंह का बलिदान दिवस बड़े धूमधाम से मनाया गया। राजपूत रेजीमेंट फतेहगढ़ के ब्रिगेडियर आई.एम.एस परमार ने परमवीर चक्र विजेता नायक जदुनाथ सिंह के गांव पहुँच कर पुष्पचक्र अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। फर्रुखाबाद से राजपूत रेजीमेंट के सूबेदार बजरंग सिंह के नेतृत्व में पहुंचे जवानों ने उन्हें सलामी दी।
नायक जदुनाथ सिंह 1948 में जम्मू-कश्मीर में बलिदानी हुए थे। वर्ष 1950 में उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र (Param Vir Chakra) से सम्मानित किया गया। ब्रिगेडियर आई.एम.एस परमार ने परमवीर चक्र विजेता नायक जदुनाथ सिंह के परिजनों से मुलाकात की और हालचाल जाना। इस दौरान उन्होंने परिजनों को उपहार भी भेंट किए। फतेहगढ़ से आए राजपूत रेजीमेंट के सैन्य अधिकारियों व कर्मचारियों ने बलिदान दिवस को लेकर 4 दिन पहले से ही तैयारियां शुरू कर दी थी।
इस अवसर पर ब्रिगेडियर आई.एम.एस परमार ने बताया कि आज के ही दिन 6 फरवरी 1948 को भारत-पाकिस्तान युद्ध में नौशेरा सेक्टर की एक पोस्ट ताइनार को पाकिस्तानी हमले से बचाने के लिए नायक जदुनाथ सिंह ने प्राणों की आहुति दे दी। जो नायक यदुनाथ सिंह एवं उनके साथियों ने जो किया वह हमारे लिए व राजपूताना रेजीमेंट बल्कि संपूर्ण भारतीय सेना के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
कैप्टन अतुल कुलश्रेष्ठ ने बताया कि आज हम सौर्य भारत यात्रा के अंतर्गत यहां आए हुए हैं। यह जो गांव है यह एक हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है, जहां हर एक नौजवान सुनकर परमवीर चक्र विजेता नायक यदुनाथ सिंह की वीर गाथा से ओतप्रोत हो जाता है। अगर नायक जदुनाथ सिंह की बात की जाए तो इनका 21 नवंबर 1916 में जन्म हुआ था और इसी गांव में खेल-कूद कर पले-बडे। और उन्होंने यही गांव के एक प्राइमरी स्कूल में पढ़ाई की और इनका कुश्ती में बहुत ही मनोबल बड़ा था और यह कुश्ती के लिए बहुत बहुत दूर तक चले जाते थे, क्योंकि इन्हें कुश्ती लड़ना बहुत अच्छा लगता था।
नायक यदुनाथ सिंह हनुमान जी भक्त थे और इन्हें कुछ लोग ब्रह्मचारी के नाम से भी जानते थे। इनकी माता का नाम जमुना कुँवर और पिता का नाम बीरबल सिंह था। यह सात भाई-बहन थे जिसमे (6 भाई और एक बहन) में तीसरे नंबर के थे। अपने गांव के स्थानीय स्कूल में चौथी तक के मानक का अध्ययन किया था लेकिन वह अपने परिवार की आर्थिक स्थिति के कारण अपनी शिक्षा को आगे नहीं बढ़ा सके। उन्होंने अपना बचपन का अधिकांश समय अपने खेत में कृषि कार्य में अपने परिवार की मदद करने में बिताया। खेल क्रीड़ा में उन्होंने कुश्ती की और अंततः अपने गांव के कुश्ती चैंपियन बन गए। अपने चरित्र और कल्याण के लिए, उन्हें “हनुमान भगत बाल ब्रह्मचारी” नाम से जाना जाता था। (Param Vir Chakra)
हनुमान जी की पूजा करने के साथ-साथ ही इन्होंने शादी भी नहीं की थी। यह जब 17 अट्ठारह साल के हुए तो यह चोरी से भाग गए थे। इनको परिवार वालों ने हर जगह ढूंढा पर उनका कहीं पता नहीं चला। कुछ दिन पश्चात पता चला कि यह फतेहगढ़ में है तो वहां इनके माता-पिता पहुंचे तो उन्होंने देखा कि यह राजपूत रेजीमेंट सेना में सिपाही के पद पर अपनी ट्रेनिंग कर रहे थे। इसके बाद वे चुपचाप घर वापस चले आए। और सन 1941 में ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल किया गया था। (Param Vir Chakra)
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इन्होने बर्मा में जापान के खिलाफ लड़ाई में भाग लिया था। उन्होंने बाद में भारतीय सेना के सदस्य के रूप में 1947 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में भाग लिया। 6 फरवरी 1948 को नौशेरा, जम्मू और कश्मीर में युद्ध के दौरान एक पोस्ट को पाकिस्तान के हमले से बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। वर्ष 1950 में उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। (Param Vir Chakra)
शनिवार को ब्रिगेडियर आई.एम.एस परमार, लेफ्टिनेंट कर्नल सुशील कुमार, कैप्टन अतुल कुलश्रेष्ठ, एसडीएम कलान बरखा सिंह व तहसीलदार अजय कुमार यादव समेत कई अफसर कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे। (Param Vir Chakra)