
बिहार की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। सोमवार 14 अप्रैल को राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (RLJP) के अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस ने एनडीए (नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस) से अलग होने की घोषणा कर दी। इस निर्णय के पीछे उन्होंने अहम कारण बताया कि दलितों के साथ हो रहे निरंतर अन्याय और उनकी पार्टी की उपेक्षा।
पशुपति का ये कदम राज्य की सियासत के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। पटना में अंबेडकर जयंती के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए पारस ने आरोप लगाया कि एनडीए में उनकी पार्टी को न तो कोई सम्मान मिल रहा है और न ही कोई जिम्मेदारी। उन्होंने कहा कि बीजेपी और जेडीयू दोनों ही RLJP का नाम तक नहीं लेते और एनडीए की बैठकों में उन्हें बुलाना तक जरूरी नहीं समझा जाता।
महागठबंधन से करीबियां
कुमार ने इस दौरान यह भी संकेत दिए कि अगर महागठबंधन उन्हें "सम्मानजनक स्थान" देता है, तो वे उस ओर झुकाव दिखा सकते हैं। उनके अनुसार, हम दलित समाज के अधिकारों के लिए राजनीति में हैं, सम्मान और भागीदारी हमारी प्राथमिकता है। ये बयान इस बात को और अधिक स्पष्ट करता है कि पारस का रुख अब महागठबंधन की ओर हो सकता है, यदि वहां सम्मान मिलता है।
बता दें कि इससे पहले पारस ने कई बार राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव से मुलाकात की है। इससे राजनीतिक हलकों में कयास लगाए जा रहे हैं कि आने वाले विधानसभा चुनावों से पहले वह महागठबंधन का हिस्सा बन सकते हैं। अगर यह गठबंधन होता है तो यह बिहार की राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत दे सकता है। एनडीए को आने वाले समय में झटका लग सकता है।