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Up Kiran, Digital Desk: केरल में मतदाता सूची गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया (Special Intensive Revision - SIR) को लेकर मचे घमासान के बीच अब सुप्रीम कोर्ट ने दखल दिया है. आगामी स्थानीय निकाय चुनावों (Local Body Elections) के कारण उत्पन्न हो रहे "प्रशासनिक गतिरोध" को देखते हुए, केरल सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया है, जिसकी सुनवाई शुक्रवार, 21 नवंबर 2025 को होने वाली है. यह देखना दिलचस्प होगा कि कोर्ट इस मामले पर क्या रुख अपनाता है

क्या है 'SIR' प्रक्रिया और क्यों हो रहा है इस पर विवाद?

'SIR' (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मतदाता सूचियों का गहनता से पुनरीक्षण किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सूची अपडेटेड और सटीक रहे. इसमें बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारियों को लगाया जाता है. केरल सरकार का तर्क है कि 4 नवंबर से 4 दिसंबर तक चलने वाली इस 'कठिन' 'SIR' प्रक्रिया और दिसंबर में होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों का एक साथ होना, राज्य प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है.

राज्य सरकार ने अपनी याचिका में बताया है कि स्थानीय निकाय चुनावों को संविधान के अनुच्छेद 243-E और 243-U के तहत 21 दिसंबर, 2025 तक पूरा करना अनिवार्य है. इन चुनावों के लिए लगभग 1,76,000 सरकारी और अर्ध-सरकारी कर्मचारी, साथ ही 68,000 पुलिस और सुरक्षाकर्मी तैनात किए जाएंगे. 'SIR' प्रक्रिया में 25,668 अतिरिक्त अधिकारियों की आवश्यकता होगी, और ये सभी उसी 'सीमित प्रशिक्षित चुनाव अनुभवी' स्टाफ पूल से होंगे. इस वजह से मानव संसाधनों पर भारी दबाव पड़ेगा और एक "प्रशासनिक गतिरोध" पैदा हो सकता है.

क्या चाहती है केरल सरकार?

केरल सरकार ने केरल हाई कोर्ट द्वारा याचिका खारिज किए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. सरकार का कहना है कि विधानसभा चुनाव मई 2026 तक होने हैं, इसलिए अभी 'SIR' प्रक्रिया को जल्दी से पूरा करने की कोई 'तत्काल आवश्यकता' नहीं है. सरकार ने निर्वाचन आयोग से 'SIR' प्रक्रिया को स्थानीय निकाय चुनाव पूरे होने तक स्थगित करने का निर्देश देने की मांग की है. इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) ने भी सुप्रीम कोर्ट में इसी तरह की याचिका दायर कर 'SIR' प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है, क्योंकि उनके अनुसार यह स्थानीय निकाय चुनावों के साथ नहीं हो सकती.

यह मामला राज्य के प्रशासनिक संचालन और चुनाव प्रक्रियाओं के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस बात पर गहरा प्रभाव डालेगा कि राज्य चुनाव से संबंधित प्रक्रियाओं को कैसे प्रबंधित करते हैं.

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