कानपुर। शौचयुक्त को लेकर वादे तो बहुत बड़े बड़े किये जा गयें लेकिन क्या इन योजनाओं से पूर्णत: लोगों को समाधान मिल पाया है, आज हम इस पर कुछ चर्चा करेंगे जो की चर्चा का विषय भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने दस केंद्रीय मंत्रियों और गंगा से संबंधित सभी पांच राज्यों के मुख्यमंत्रियों सहित 14 दिसंबर को कानपुर, उप्र में नमामि गंगे परियोजना के कामों की समीक्षा करेंगे। लेकिन संशय यह कि क्या वह वाकई ईमानदार समीक्षा कर सकेंगे।
राज्य सरकार उन्हें सच दिखाने की हिम्मत शायद ही जुटा सके। कानपुर में गंदे नालों को मोड़ा जा रहा है, गंगा किनारे की बस्तियों-गांवों में आनन-फानन शौचालय बन रहे हैं और जलस्तर बढ़ाकर गंगा में बहते पाप को छिपाने का प्रयास जारी है। समीक्षा बैठक से पहले कानपुर में चल रहे इस खेल से अपने पाठकों को हम बुधवार के अंक में अवगत करा चुके हैं।
कानपुर ही नहीं, उप्र के दो अन्य बड़े केंद्रों प्रयागराज और वाराणसी के अलावा बिहार और बंगाल में भी नमामि गंगे की ‘समीक्षा’ करने में जुट गया है, ताकि देश और प्रधानमंत्री को सच से अवगत कराया जा सके। पानी से पाप बहाने की कोशिश में नरोरा बांध से बुधवार को 5728 क्यूसिक जल की तुलना में गुरुवार को 8862 क्यूसिक जल छोड़ा गया।
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तेजी से पानी छोड़े जाने के कारण गंगा किनारे की गंदगी भी साफ होने लगी है। 14 तक प्रधानमंत्री को गंगा एकदम स्वच्छ दिखेगी। हालांकि यदि वह आचमन करेंगे, जैसा कि कहा जा रहा है, तो गंगाजल में बदबू महसूस कर सकते हैं। फिलहाल कानपुर की बात करते हैं, जहां समीक्षा की तैयारी से पहले ही गंगा सफाई में हुए कामों की पोल एक-एक कर खुल रही है।
सीवेज सिस्टम न होने से पांच लाख से अधिक आबादी क्षेत्र का सीवर नालों में ही जा रहा है। यह हालात तब हैं, जब वर्ष 1989 से अभी तक गंगा की सफाई के नाम पर 1500 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हो चुके हैं। सीवेज निस्तारण का प्लान भी नहीं बना।
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खर्च हुए 1500 करोड़, 40 फीसद कानपुर सीवर विहीन
गंगा एक्शन प्लान : 166 करोड़ रुपये
जेएनएनयूआरएम : 745 करोड़ रुपये
अमृत योजना : 195 करोड़ रुपये
नमामि गंगे : 433 करोड़ रुपये
अभी तक हुए 3500 घरों के सर्वे में 500 घर शौचालय विहीन मिले हैं। 50 लोगों ने शौचालय के लिए फार्म भरा है।http://www.upkiran.org
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