Ashok Gehlot सरकार के सामने ये हैं 3 बड़ी चुनौतियां, अग्निपरीक्षा से कम नहीं

img
जयपुर। राज्य की Ashok Gehlot सरकार के 2 साल का कार्यकाल गुरुवार को पूरा हो चुका हैं और सरकार अब तीसरे साल में प्रवेश करने जा रही है। तीसरे साल के कार्यकाल में गहलोत सरकार के सामने तीन बड़ी चुनौतियां होंगी, जिन्हें पार करना उसके लिए अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा।
Ashok Gehlot
प्रदेश की गहलोत सरकार इन 2 सालों में जनता के लिए किए गए कामों को गिना भी रही है और यह बता भी रही है कि उन्होंने चुनाव घोषणा पत्र के 50 प्रतिशत से ज्यादा वादे पूरे करते हुए जनता की आकांक्षाओं पर खरा उतरने का प्रयास किया है। प्रदेश में सहाड़ा, सुजानगढ़ और राजसमंद के उपचुनाव हो या फिर गहलोत मंत्रिमंडल का विस्तार या फेरबदल या फिर राजनीतिक नियुक्तियां वह तीन चुनौतियां होंगी, जिनसे गहलोत सरकार को अपने तीसरे साल में सफलतापूर्वक निपटना होगा।

उपचुनाव

अब तक हुए 3 उपचुनाव में से दो में कांग्रेस ने की जीत दर्ज की है। अब होने वाले तीनों उपचुनाव में कांग्रेस के पास 2 सीटें थी। ऐसे में उन सीटों को बचाना उनके लिए चुनौती होगी। राजस्थान विधानसभा के 3 सदस्यों मंत्री मास्टर भंवर लाल मेघवाल, किरण महेश्वरी और कैलाश त्रिवेदी का निधन पूरे राजस्थान के लिए बुरी खबर थी। इन सीटों पर 6 महीने में यानी अप्रैल या मई में उपचुनाव होंगे, जिन्हें जीतना सत्ताधारी दल कांग्रेस के लिए एक अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगी। इन 3 सीटों में से 2 विधानसभा सीटों सुजानगढ़ और सहाड़ा पर कांग्रेस का कब्जा था। ऐसे में इन 3 सीटों में अपनी सीटों को बचाए रखना और राजसमंद के चुनाव में भी जीत दर्ज करना सत्ताधारी दल कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती होगा। अब तक प्रदेश में 3 उपचुनाव हुए हैं, जिनमें रामगढ़, खींवसर और मंडावा शामिल हैं। इन तीन उपचुनाव में से कांग्रेस पार्टी ने 2 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी। अब कांग्रेस के सामने फिर से 3 उपचुनाव की चुनौतियां खड़ी हो गई है।

खत्म नहीं हुआ राजनीतिक नियुक्तियों का इंतजार

प्रदेश में जब से कांग्रेस सरकार बनी है, उसके पहले साल से ही राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर चर्चा होती रही है। विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने वाले कार्यकर्ता राजनीतिक नियुक्तियों के लिए तैयार हो ही रहे थे कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा। इसके चलते 1 साल तक किसी ने राजनीतिक नियुक्तियों का नाम नहीं लिया। इसके बाद 2020 में सबको उम्मीद थी कि राजनीतिक नियुक्तियां कर दी जाएगी लेकिन राजस्थान में हुए राजनीतिक उठापटक के चलते राजनीतिक नियुक्तियां एक बार फिर से टल गई। अब गहलोत सरकार तीसरे साल में प्रवेश कर रही है तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं का सब्र का बांध अब टूटने लगा है। सरकार के सामने चुनौती है कि वह कैसे सभी गुटों को साथ में लेकर यह राजनीतिक नियुक्तियां करें।

सबसे बड़ी चुनौती कैबिनेट विस्तार या फेरबदल

कैबिनेट विस्तार में पायलट कैंप के नेताओं को जगह दी गई तो विधायकों के नाराज होने का खतरा मंडरा रहा है, वहीं अगर पायलट कैंप को जगह नहीं दी गई तो फिर से बगावत का डर है। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का दूसरा साल काफी चुनौतीपूर्ण रहा और उसमें कांग्रेस पार्टी के ही विधायकों के बगावत करने से राजस्थान की कांग्रेस सरकार एक बार मुश्किल में आ गई।
आलाकमान के बीच बचाव के बाद अब राजस्थान में सब कुछ ठीक नजर आ रहा है लेकिन राजनीतिक उठापटक के समय पार्टी और सरकार में अपने पद गंवा चुके सचिन पायलट, विश्वेंद्र सिंह, रमेश मीणा, मुकेश भाकर और राकेश पारीक को दोबारा एडजस्ट करना मुख्यमंत्री गहलोत के लिए एक बड़ी चुनौती होगा। जिस तरीके से 34 दिन की बाड़ेबंदी में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का साथ देने वाले विधायकों को सत्ता में भागीदारी का आश्वासन दिया गया था, उन विधायकों को अगर सत्ता में भागीदारी नहीं मिली तो एक नया विरोधी गुट भी पैदा होने का खतरा हो जाएगा। वहीं अगर पायलट कैंप के विधायकों को शामिल नहीं किया गया तो फिर से बगावत का खतरा हो जाएगा।
Related News