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लखनऊ।। फूलपुर लोकसभा उप-चुनाव में भाजपा को मात देने के लिये सपा और बसपा ने 23 साल पुरानी अपनी दुश्मनी को भुलाकर ‘दोस्ती’ का हाथ मिलाया है। बसपा सपा उम्मीदवार नागेंद्र पटेल को समर्थन कर रही है। सपा-बसपा के समझौते ने भाजपा उम्मीदवार कौशलेंद्र पटेल के पसीने छुड़ा दिए हैं। वहीं, ऐसे में चुनाव के आखिरी समय बाहुबली अतीक अहमद ने निर्दलीय प्रत्यासी के रूप में मैदान में उतरकर मुकाबले को बेहद रोचक बना दिया है। कहा जा रहा है कि बाहुबली अतीक अहमद इस सीट का चुनावी समीकरण बदल सकते हैं।
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फूलपुर संसदीय क्षेत्र में अन्य पिछड़ी जातियों का वोट सबसे अधिक हैं और इसमें भी सबसे ज्यादा पटेल मतदाताओं की संख्या है। ऐसे में सपा और भाजपा दोनों ने ही जातीय समीकरण को देखते हुये अपने-अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। दोनों ही दलों ने पटेल वोटरों को अपने खेमे में लाने के लिए ये कवायद की है।
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हालाँकि फूलपुर सीट पर भाजपा और सपा उम्मीदवार के बीच मुख्य मुकाबला माना जा रहा है। लेकिन एक तरफ जहाँ अतीक सपा का खेल बिगाड़ते हुये नजर आ रहे हैं, वहीं कांग्रेस ने ब्राह्मण समाज के मनीष मिश्रा को उतारकर भाजपा की राह में भी रोड़ा अटका दिया है।
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चुनाव के अंतिम समय में अतीक को उतार कर…सपा को…
बीएसपी का समर्थन मिलने के बाद सपा उम्मीदवार काफी मजबूत स्थिति में है क्योंकि बीएसपी के समर्थन का सीधा फायदा सपा को ही होगा। हालांकि सपा के लिए थोड़ी मुश्किल अतीक अहमद ने जरूर खड़ी कर रखी है। गौरतलब है कि अतीक वर्ष 2004 में फूलपुर सीट से सपा प्रत्याशी के रूप में लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। इसलिए इस बार उनके चुनावी मैदान में उतरने से समाजवादी पार्टी को अल्पसंख्यक वोटों के नुकसान के कयास लगाये जा रहे हैं। फूलपुर के मुस्लिम इलाकों में अतीक की अच्छी पकड़ मानी जाती है। ऐसे में इसका खामियाजा सपा को ही भुगतना पड़ सकता है।
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फूलपुर का जातीय समीकरण काफी दिलचस्प है। इस लोकसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा पटेल मतदाता हैं, इनकी संख्या करीब 3 लाख है। मुस्लिम 2.5 लाख, यादव और कायस्थ मतदाताओं की संख्या भी 2 लाख के आसपास है। लगभग 1.5 लाख ब्राह्मण और 1 लाख से अधिक अनुसूचित जाति के मतदाता हैं। फूलपुर की सोरांव, फाफामऊ, फूलपुर और शहर पश्चिमी विधानसभा सीट ओबीसी बाहुल्य हैं। इनमें कुर्मी, कुशवाहा और यादव वोटर सबसे अधिक हैं।
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भाजपा पहली बार मोदी लहर में वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में फूलपुर सीट पर जीत का परचम लहराने में कामयाब रही थी। केशव प्रसाद मौर्य भाजपा उम्मीदवार के तौर वर्ष 2014 में फूलपुर सीट से सांसद बने, लेकिन मार्च 2017 में प्रदेश के डिप्टी सीएम बनने और उनके फूलपुर से इस्तीफा देने के बाद उप-चुनाव हो रहा है।
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यूपी में भाजपा की लहर वर्ष 2014 के लोकसभा या वर्ष 2017 के विधानसभा-चुनाव जैसी नहीं दिख रही। भाजपा का जो माहौल था, वह अब काफी बदल चुका है। योगी सरकार के एक साल के कार्यकाल को देखा जाये तो उनके पास उपलब्धि के नाम पर गिनाने को कुछ भी नहीं हैं। हालाँकि यूपी के डिप्टी सीएम केशव मौर्य अब भी मोदी लहर के सहारे कौशलेंद्र पटेल को जिताने के लिये जी-जान से जुटे हुए हैं।
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सपा और बसपा की दोस्ती पर सीएम योगी आदित्यनाथ के बयान, “जंगल में बाढ़ आने पर सांप और छछूंदर एकसाथ हो जाते हैं, ठीक वैसे ही एसपी और बीएसपी अपना अस्तित्व बचाने के लिए एकसाथ हो गए।” के बाद सपा और बसपा ने अपनी पूरी ताकत इस चुनाव में झोंक दी है। जिसका उन्हें फायदा मिलता दिख रहा है।
वहीँ फूलपुर उप-चुनाव में अतीक अहमद की पत्नी और बेटे प्रचार की कमान संभाले हुये हुये हैं। वे लोकसभा-क्षेत्र के मुस्लिम बहुल इलाकों में घर-घर जाकर वोट मांग रहे हैं। अतीक अहमद की मार्मिक अपील और पोस्टर भी मुसलमानों के बीच बांटे जा रहे हैं। जबकि समाजवादी पार्टी और बसपा अतीक अहमद को वोट-कटवा उम्मीदवार के तौर पर बताने में जुटी है। मुसलमानों के बीच ये भी बताने की कोशिश की जा रही है कि मोदी के विजय-रथ को रोकने के लिये सपा उम्मीदवार का जीतना कितना अहम है।
दरअसल फूलपुर सीट पर समाजवादी पार्टी का मजबूत जनाधार है। यही वजह है कि यहाँ वर्ष 1996 से लेकर वर्ष 2004 तक समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार लगातार जीतता रहा है। फूलपुर की लोकसभा सीट से कुर्मी समाज के कई सांसद बने हैं। प्रो. बी.डी. सिंह, रामपूजन पटेल (3 बार), जंग बहादुर पटेल (2 बार) सपा के टिकट पर सांसद रह चुके हैं। इसके बाद सपा ने वर्ष 2004 में अतीक अहमद को फूलपुर से अपना प्रत्याशी बनाया जो विजयी रहे, लेकिन इसके बाद वर्ष 2009 के चुनाव में बसपा के टिकट पर पंडित कपिल मुनि करवरिया चुने गये और फिर वर्ष 2014 में बीजेपी के केशव प्रसाद मौर्य ने यहाँ से जीत हासिल की।
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