डॉ. अजय कुमार मिश्रा
लखनऊ के लेवना होटल में हाल ही में हुए घटना के पश्चात् जिस तरह से राज्य सरकार ने तेजी से बड़े आदेश पारित किये है, उससे न केवल कई प्रश्न उठ रहें है, बल्कि होटल व्यवसायी भी डरे हुए है। (Uttar Pradesh) प्रश्न एक साथ कई है पर मुख्य प्रश्न यह है कि यदि इस होटल में इतनी खामियां थी तो इसे चलने ही क्यों दिया गया ? शहर की दिग्गज हस्तियों के आशियाने से महज चंद किलोमीटर की दूरी पर यह होटल वर्षो से चल रहा था। क्या इसकी खबर किसी को नहीं थी ? यदि यह हाल राजधानी का है तो प्रदेश के अन्य जिलों में स्थित होटलों के बारें में आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है। जीवन अनमोल है और उसे बचाने के लिए हर संभव प्रयास होने चाहिए। जानबूझकर लापरवाही करने पर त्वरित कार्यवाही भी होनी चाहिए। पर क्या इस घटना पर सीमित समय में नियंत्रण पाने के लिए हमारे पास समुचित संसाधन अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप है? जिन चार लोगों की आकस्मिक मृत्यु हुई है उनके परिवार के साथ सभी की संवेदनाएं है। पर इस प्रश्न का जबाब किसके पास है कि विभिन्न विभाग जिनकी जिम्मेदारी इस होटल को लेकर के थी उन्होंने अपनी जिम्मेदारी क्यों नहीं पूरी की ? क्या इस तरह की घटना अब प्रदेश में स्थित होटलों में नहीं होगी? इसके लिए सरकार द्वारा क्या मानक अपनाये जा रहें है ? क्या राजधानी के सभी होटलों में मानकों की पूर्ति के लिए समय सीमा निर्धारित की गयी? घटना को रोकने के लिए सभी प्रक्रियाओं को सही तरह से पूरा क्यों नहीं किया जाता ? ऐसे अनेको प्रश्न है जिसका जबाब न मिला है और शायद न मिलेगा क्योंकि हमारी प्रतिबद्धता कार्यवाही की तब होती है जब घटना घटित हो जाती है। (Uttar Pradesh)
सरकारी विभागों की सबसे अच्छी खूबसूरती है कि वो दुर्घटना के बाद कई ऐसे नियमों को बता देगे जिसकी अनदेखी हुई होगी पर घटना के पहले उसका पालन सुनिश्चित नहीं कर सकते। यहाँ सबको अपनी पड़ी है फिर चाहें जिस भी तरह से हो सभी पल्ला झाड़ना जानते है। नियमों को आधार बनाकर जिस तरह से प्रदेश भर में जाँच चल रही है क्या सरकार यह सुनिश्चित कर सकेगी की उसमे भ्रष्टाचार नहीं हो रहा है ? क्या सरकार यह सुनिश्चित कर सकेगी की अब वही होटल चलेगे जो नियमों के अधीन कार्य कर रहे है ? पर दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि सरकार भी निर्णय वोट बैंक को ध्यान में रख कर लेती है | इस घटना पर सीधे सीएम साहब को निर्णय लेना पड़ा तो विभाग क्या कर रहे थे ? क्या हर बात के लिए निर्णय राजा को ही लेना चाहिए? लेवना होटल के पहले प्रदेश के जिन होटल में आग लगी थी उससे हमने क्या सीखा ? क्या सरकार और विभाग इस बात की गारंटी ले सकते है की प्रदेश में सभी नियमों के अधीन ही कार्य होगा?
अतिथ्य उद्योग की सरकार की राष्ट्रीय एकीकृत डेटाबेस के अनुसार उत्तर प्रदेश में अतिथ्य उद्योग में कुल 3249 इकाई कार्यरत है जिनमे शामिल है – होटल (1861), गेस्ट हाउस (585), बी एंड बी (393), रिसोर्ट (65), लाँज (103), फार्म स्टे (6), हेरिटेज होम (5), अपार्टमेंट होटल (9), अन्य (222)। आकड़ों के अनुसार सर्वाधिक होटल महाराष्ट्र 4547 में, दुसरे क्रम पर गोवा है जहाँ 3809 होटल है, तीसरे क्रम पर गुजरात 3747 है, चौथे क्रम पर राजस्थान (3668), पाचवें क्रम पर उत्तराखंड (3545) है। उत्तर प्रदेश का स्थान देश में छठे क्रम पर है। पूरे देश में कुल 45185 इकाई इस क्षेत्र में कार्य कर रही है। यहाँ आकड़ों को सामने रखने के पीछे उद्देश्य सिर्फ इतना है की लेवना होटल में घटी घटना के पश्चात् जिस तरह से सरकार ने बड़ी कार्यवाही की, क्या उससे प्रदेश की छवि प्रभावित नहीं हुई ? क्या राष्ट्रिय और अंतर्राष्ट्रीय टूरिस्ट अब उत्तर प्रदेश में आने के लिए कई बार नहीं सोचेगा ?(Uttar Pradesh)
यदि हम व्यवसायियों की बात करें तो विभिन्न घटनाओं के पश्चात उन्हें यदि जेल के पीछे ही डाल दिया जायेगा तो कोई व्यवसायी इस प्रदेश में कार्य करने ही क्यों आयेगा। इन नीतियों पर क्या प्रदेश की अर्थव्यवस्था सबसे मजबूत बनेगी ? सरकार केन्द्रित अप्रूवल सिस्टम इस क्षेत्र के लिए क्यों नहीं बनाती जहाँ एक ही जगह से सभी प्रमाण पत्र इस क्षेत्र में कार्य करने वाले व्यवसायियों को मिल सकें। क्या सरकार यह सुनिश्चित नहीं कर सकती की बिना सम्पूर्ण प्रमाण के कोई व्यवसायी कार्य ही आरंभ नहीं करेगा? इनके अतिरिक्त अन्य पहलुओं पर विचार करें तो प्रदेश की छवि रोजगार के मामलों में किसी से छिपी नहीं है भले ही आंकड़े कुछ भी बयां करें, जमीनी सच्चाई सभी जानते है। इस घटना के पश्चात् बेरोजगार हुए लोगों और अप्रत्यक्ष रूप से कार्य करने वाले लोगों के बारें में सोचने का समय किसके पास है ?(Uttar Pradesh)
सरकार को चाहिए की इस तरह की घटना होने पर होटल गिराने के बारें में सोचने के बजाय सिस्टम को पहले से ही इस तरह से मजबूत और ऑनलाइन करें की इस व्यवसाय में आने वाले व्यवसायियों को एक छत के निचे सारे प्रमाण मिल सकें और नियमों की पूर्ति की जा सके सकें। यदि डर और भय का माहौल बनाया जायेगा तो प्रदेश में कार्य करने वाले व्यवसायी न केवल डरे रहेगे बल्कि पलायन की भी सोचने पर विवश होंगे। लखनऊ के एक समाचार पत्र ने मानकों के अंतर्गत कार्य कर रहें होटलों के बारे में जानकारी और संख्या प्रकाशित किया था इससे स्थिति का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।| मौजूदा समय में कार्यरत होटलों को न केवल मानकों की पूर्ति का मौका मिलना चाहिए, बल्कि सहयोगात्मक रवैये से उनकी बात को भी सुनना चाहिए | क्योंकि सिर्फ नियमों की बात होगी तो शायद गिने चुने होटल प्रदेश में कार्य कर रहे होगे जो प्रदेश की आवश्यकता को कभी पूरा नहीं कर पायेगे बल्कि उनकी लागत इतनी अधिक होगी की आम जन के पॉकेट में भी नहीं आ पायेगी। इन बातों पर भी सम्बंधित और सरकार को सोचना चाहिए, आख़िर मुद्दा सिर्फ घटना का नहीं बल्कि प्रदेश की छवि के साथ –साथ, व्यवसायी, रोजगार और यात्रियों का भी है।(Uttar Pradesh)
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