पटना, 10 अप्रैल | बिहार में अपराध बेकाबू होते जा रहे हैं, यहां तक कि अपराधी नियमित रूप से जनप्रतिनिधियों को भी बेखौफ निशाना तरीके से निशाना बना रहे हैं। पिछले सात महीनों में, पंचायत चुनावों के बाद से, कई जिलों में आठ मुखिया (ग्राम प्रधान) मारे गए।
वहीँ बता दें कि राज्य सरकार ने निर्वाचित प्रतिनिधियों को सुरक्षा प्रदान करने के उपाय किए हैं लेकिन फिर भी उन पर नियमित रूप से घातक हमले किए जा रहे हैं। ताजा घटना सहरसा जिले की है जहां शुक्रवार शाम सौर बाजार प्रखंड के खजूरी पंचायत के मुखिया रंजीत शाह की गोली मारकर हत्या कर दी गई.
इसके बाद उनके समर्थकों ने 18 घंटे तक एनएच-107 को जाम कर दिया लेकिन अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। मुखियाओं और अन्य पंचायत प्रतिनिधियों की हत्या सितंबर से नवंबर तक होने वाले पंचायत चुनाव के दौरान शुरू हुई।
बता दें कि पटना के पंडारक इलाके में अक्टूबर में मुखिया चुने जाने के तुरंत बाद अज्ञात हमलावरों ने प्रिया रंजन कुमार उर्फ गोर लाल की गोली मारकर हत्या कर दी थी. कुछ इस तरह ही पटना के रामपुर फरीदपुर पंचायत के मुखिया नीरज कुमार की भी इसी तरह हत्या कर दी गई.
अक्टूबर 2021 में चुनाव परिणाम घोषित होने के तुरंत बाद मुंगेर जिले के माओवाद प्रभावित दरहारा ब्लॉक के तहत अजीमपुर पंचायत के मुखिया परमानंद टुड्डू की भी हत्या कर दी गई।
थावे थाना अंतर्गत धनीवाटा पंचायत के सुखल मुशर की गोपालगंज में हत्या कर दी गई, साथ ही जमुई में दारखा पंचायत के जयप्रकाश प्रसाद, भोजपुर के बाबूबंध पंचायत के संजय सिंह और भागलपुर में कुमैथा पंचायत की अनीता देवी की हत्या कर दी गई.
पुलिस जांच के दौरान, यह प्रतीत हुआ कि लगभग सभी मामलों में हत्याएं पंचायत चुनाव हारने वाले प्रतिद्वंद्वी नेताओं के साथ चुनावी दुश्मनी के कारण हुईं।
पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी ने लगातार हो रही हत्याओं को ध्यान में रखते हुए ऐसे मामलों की त्वरित सुनवाई के बाद 6 महीने के भीतर दोषसिद्धि की शुरुआत की थी।
उन्होंने जन-प्रतिनिधियों को बिना झंझट के हथियारों के लाइसेंस देने का भी प्रावधान किया था ताकि वे अपनी रक्षा कर सकें लेकिन इस तरह के उपायों से हत्याओं को रोका नहीं जा सका।
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