Up Kiran, Digital Desk: क्या आपने कभी किसी ऐसे परिवार के बारे में सुना है जिसके घर एक छोटा, प्यारा, लेकिन समय से पहले जन्मा (प्रीमेच्योर) बच्चा आया हो? आपने उन्हें देखा होगा, उनकी हिम्मत और मुस्कान को सराहा होगा, लेकिन क्या आप वाकई जानते हैं कि उन 'एनआईसीयू मॉम्स' (Neonatal Intensive Care Unit Moms) के दिल में क्या चलता है और वे समाज से क्या उम्मीद करती हैं? अक्सर हम प्रीमेच्योर बच्चों के बारे में सिर्फ इतना जानते हैं कि वे थोड़े छोटे होते हैं, पर उनकी और उनके परिवार की दुनिया इससे कहीं ज़्यादा जटिल और भावनाओं से भरी होती है. आइए जानते हैं, वे माँएं हमसे क्या कहना चाहती हैं.
1. यह मेरी गलती नहीं थी, न ही ये आपका सुझाव सुनने का समय है
सबसे पहली बात जो वे चाहती हैं कि लोग समझें, वो यह कि एक प्रीमेच्योर बच्चे का जन्म अक्सर उनकी गलती नहीं होती. यह कभी भी कोई चुनाव नहीं होता. गर्भवती महिलाएँ खुद को दोष देती रहती हैं, ऐसे में बाहरी लोगों की तरफ से कोई भी गैर-जिम्मेदाराना टिप्पणी या बिन माँगी सलाह उन्हें और अंदर तक तोड़ देती है. कोई यह नहीं जानना चाहता कि आपने पड़ोस में सुना था कि "फल खाने से ऐसा होता है" या "पानी कम पिया होगा". वे सिर्फ आपका सहयोग और सहानुभूति चाहती हैं.
2. हम हर पल एक भावनात्मक रोलरकोस्टर पर होते हैं।
सोचिए, एक माँ-बाप के लिए अपने नवजात बच्चे को तार-जुड़े मशीनों से घिरा देखना कितना मुश्किल होता होगा. उनका बच्चा अक्सर सिर्फ मिलीग्राम या ग्राम में ही अपना वज़न बढ़ा पाता है. ऐसे में हर छोटी जीत— जैसे बच्चा थोड़ा वज़न बढ़ाता है, या ट्यूब से दूध पी पाता है— एक बड़ी उपलब्धि होती है. दूसरी तरफ, ज़रा-सी तबीयत खराब होने पर ही उनका दिल मुँह को आ जाता है. वे खुश और चिंतित, उम्मीद और डर के बीच झूलते रहते हैं. इसलिए, उन्हें शांत और सकारात्मक वातावरण चाहिए, किसी दिखावे या चिंता बढ़ाने वाले सवालों की ज़रूरत नहीं.
3. हमारे लिए हर 'साधारण' मील का पत्थर बहुत बड़ी बात है।
जहाँ एक सामान्य बच्चा पैदा होते ही माँ के साथ घर आ जाता है, वहीं एनआईसीयू में बच्चे कई हफ़्तों, या महीनों तक अस्पताल में रहते हैं. पहली बार कंगारू केयर करना (बच्चे को सीने से लगाकर गर्माहट देना), बिना मशीनों के साँस लेना, माँ का दूध पी पाना, या सिर्फ अपना हाथ पकड़ना— ये उनके लिए किसी पहाड़ चढ़ने से कम नहीं होते. जब बच्चा आख़िरकार घर आता है, तो भी वह सामान्य बच्चे की तुलना में काफी छोटा होता है, और माँ-बाप को विशेष देखभाल करनी पड़ती है. इन छोटे कदमों को भी सराहा जाना चाहिए, ये किसी बड़े समारोह से कम नहीं.
4. हमारी यात्रा डिस्चार्ज होने पर खत्म नहीं होती
जब एनआईसीयू का बच्चा घर आता है, तो लगता है जैसे संघर्ष खत्म हो गया. पर असल में, संघर्ष की एक नई शुरुआत होती है. कई प्रीमेच्योर बच्चों को घर आने के बाद भी लगातार डॉक्टरी निगरानी और विशेष देखभाल की ज़रूरत होती है. उन्हें आम बच्चों की तुलना में बीमारी लगने का ज़्यादा खतरा होता है, उनके विकास में देरी हो सकती है, और माँ-बाप के लिए शारीरिक व भावनात्मक तनाव बना रहता है. ऐसे में उन्हें दोस्तों और परिवार के सदस्यों के वास्तविक, निरंतर सहयोग की ज़रूरत होती है. कभी-कभी सिर्फ उन्हें खाना बनाकर देना या कुछ घरेलू कामों में हाथ बँटा देना भी बहुत बड़ा सहारा होता है.
5. व छोटे भले हों, लेकिन वे योद्धा हैं
हर प्रीमेच्योर बच्चा एक नन्हा योद्धा होता है, जिसने अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी जंग जन्म लेते ही शुरू कर दी थी. उनकी माँएं ये चाहती हैं कि आप उन छोटे से बच्चों की अद्भुत शक्ति और जीवन के लिए उनके संघर्ष का सम्मान करें. ये सिर्फ 'छोटे बच्चे' नहीं होते, ये वे चैंपियन होते हैं जो हर बाधा को पार करके बाहर आते हैं. उनकी कहानी दूसरों को हिम्मत देती है.
इसलिए अगली बार जब आप किसी एनआईसीयू मॉम या उनके बच्चे से मिलें, तो उन्हें जज न करें, सलाह न दें. बस उनकी आँखों में देखिए, उनकी हिम्मत को सराहिए और उन्हें अपनी सच्ची सहानुभूति और समर्थन का अहसास कराइए. यह छोटा सा कदम उनके लिए दुनिया बदल सकता है.




