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Up Kiran, Digital Desk: सावन के इस पावन महीने में कांवड़ यात्रा के कई रंग दिखाई देते हैं कहीं उत्सव का माहौल, कहीं आस्था की झलक। लेकिन इस बार उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से एक ऐसी प्रेरणादायक कथा सामने आई है, जिसने न केवल लोगों को भावुक कर दिया, बल्कि समाज को निष्ठा और समर्पण का असल अर्थ भी समझा दिया। ये कहानी है आशा की एक पत्नी जो शिवभक्ति की राह पर अपने दिव्यांग पति को पीठ पर बैठाकर 150 किलोमीटर की कठिन यात्रा पर निकली हैं।

कांवड़ नहीं, प्रेम का संकल्प

हरिद्वार से मोदीनगर की यह यात्रा आम श्रद्धालुओं के लिए एक धार्मिक अनुष्ठान हो सकती है, लेकिन आशा के लिए यह एक परीक्षा है — अपने पति सचिन के जीवन को दोबारा संवारने की, उनकी इच्छा को पूरा करने की, और भगवान भोलेनाथ के दरबार में अपनी प्रार्थना पहुंचाने की। सचिन, जो कभी हर साल खुद कांवड़ लेकर जाते थे, अब रीढ़ की हड्डी के ऑपरेशन के बाद पैरालिसिस का शिकार हो चुके हैं। ऐसे में आशा ने निर्णय लिया कि वह खुद अपने पति को पीठ पर बैठाकर इस साल की कांवड़ यात्रा पूरी करेंगी।

रास्ते में भावनाओं की भीड़

सड़क के किनारे खड़े श्रद्धालु जब आशा को सचिन को लेकर चलते हुए देखते हैं, तो न सिर्फ उनका सम्मान करते हैं, बल्कि कई बार उनकी आंखें भी नम हो जाती हैं। किसी के लिए ये केवल एक तस्वीर हो सकती है, पर असल में यह एक चलती-फिरती मिसाल है – सेवा, प्रेम और त्याग की।

“पति की सेवा ही मेरा धर्म है”

आशा का मानना है कि पति की सेवा करना ही सबसे बड़ा पुण्य है। दो बच्चों के साथ वह धीरे-धीरे यात्रा तय कर रही हैं। जीवन की कठिनाइयों के बावजूद उनके चेहरे पर दृढ़ता झलकती है। वह बताती हैं कि सचिन कभी परिवार के आर्थिक आधार थे, पेंटिंग और पीओपी का काम कर परिवार का भरण-पोषण करते थे। लेकिन बीमारी के बाद हालत बदल गई — कई बार घर में सब्जी तक नसीब नहीं होती, और बच्चे भी चुपचाप रोटी-चटनी खाकर सो जाते हैं।

सरकारी आयुष्मान योजना के सहारे उनका इलाज संभव हो पाया, वरना स्थिति और भी विकट होती।

सचिन की खामोश भावनाएं

सचिन बताते हैं कि उनका ऑपरेशन 1 अगस्त को हुआ था, जिसके बाद से वह चलने-फिरने में असमर्थ हैं। उन्होंने कभी नहीं कहा था कि उन्हें हरिद्वार ले चला जाए, लेकिन आशा ने खुद यह ठान लिया। 16 वर्षों से वह कांवड़ ला रहे थे, लेकिन यह 14वीं कांवड़ उनके लिए विशेष है — क्योंकि इस बार यह उनकी पत्नी की पीठ पर सवार होकर आ रही है।

“बेटा बीमार है, घर की हालत अच्छी नहीं, मैं खुद कुछ नहीं कर सकता… लेकिन आशा की हिम्मत और गुरुजी की कृपा ही है जो मुझे जीवित महसूस करा रही है,” सचिन भावुक होकर कहते हैं।

सरकार से उम्मीद

आशा की अपील सरकार से बस इतनी है — कोई छोटी सी नौकरी या सहायता मिल जाए, जिससे उनका घर चल सके। वह कहती हैं कि अगर मदद न भी मिली, तो भी वह हार नहीं मानेंगी। भगवान शिव पर उनकी अटूट श्रद्धा ही उन्हें हर रोज़ आगे बढ़ने की शक्ति देती है।

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