भगवान जगन्नाथ (Lord Jagannath) की रथयात्रा अद्भुत उत्सव है। इस रथयात्रा में सबसे आगे ताल ध्वज पर श्री बलराम, उसके पीछे पद्म ध्वज रथ पर माता सुभद्रा एवं सुदर्शन चक्र और अन्त में गरुण ध्वज या नन्दीघोष नाम के रथ पर श्री जगन्नाथ जी सबसे पीछे चलते हैं। तालध्वज रथ 65 फीट लंबा, 65 फीट चौड़ा और 45 फीट ऊँचा होता है। इसमें 07 फीट व्यास के 17 पहिये लगे हैं। रथयात्रा का दृश्य बहुत ही मनोरम होता है।
रथयात्रा संपन्न होने पर श्री जगन्नाथ जी के प्रसाद का वितरण होता है। श्री जगन्नाथ जी (Lord Jagannath) के प्रसाद को महाप्रसाद कहा जाता है। शेष अन्य तीर्थों के प्रसाद को सामान्यतः प्रसाद ही कहा जाता है। श्री जगन्नाथ जी के प्रसाद को महाप्रसाद का स्वरूप महाप्रभु बल्लभाचार्य जी के द्वारा मिला। इसके पीछे भी एक रोचक कथा है।
कथा के अनुसार एक बार महाप्रभु बल्लभाचार्य की निष्ठा की परीक्षा लेने के लिए उनके एकादशी व्रत के दिन पुरी पहुँचने पर मन्दिर में ही किसी ने उन्हें प्रसाद दे दिया। महाप्रभु बल्लभाचार्य ने प्रसाद हाथ में लेकर एक दिन और रात स्तवन करते रहे और अगले दिन द्वादशी को स्तवन संपन्न होने पर ही उस प्रसाद को श्रद्धा के साथ ग्रहण किया। उसी दिन से उस प्रसाद को महाप्रसाद का गौरव प्राप्त हुआ। महाप्रसाद में नारियल, लाई, गजामूंग और मालपुआ का भोग विशेष रूप से भक्तों को प्रदान किया जाता है। (Lord Jagannath)