
पितृ पक्ष आरम्भ हो चुके हैं, जो 8 अक्टूबर 2018 तक चलेंगे। पितृ पक्ष में जिन परिवार वालों के परिजनों की मौत हो चुकी है उनकी पुण्य आत्माएं इन 16 दिनों के लिए धरती पर वापस आती हैं। पितरों के जीवित परिजन उनका 16 दिनों का श्रद्धा पूर्वक उनका तर्पण क्रिया कर उन्हें प्रसन्न करते हैं। इसके बदले में पितर अपने परिवार के जीवित सदस्यों को आशीर्वाद देते हैं। पितरों की आत्मा जिस जगह पर निवास करती हैं इस स्थान को परलोक या मृत्यु लोक कहते हैं। इस मृत्यु लोक के राजा यमराज है। गरुड़ पुराण में यमराज के साम्राज्य और आत्माएं यमलोक में कैसे निवास करती हैं उनके बारे में विस्तार से बताया गया है।

कैसा है यमलोक
गरुड़ पुराण में मृत्यु और उसके बाद होने वाली समस्त यात्राओं और क्रियाओं के बारे में विस्तार से बताया गया है। गरुड़ पुराण के अनुसार यमराज के महल को कालित्री महल कहते हैं और उनके सिंहासन को विचार-भू कहते हैं। पद्म पुराण में उल्लेख मिलता है कि यमलोक पृथ्वी से 86,000 योजन यानी करीब 12 लाख किलोमीटर दूर है। यमलोक के बारे में कहा जाता है कि यह बहुत ही डरावना है। यहां जीवों को तरह-तरह की यातनाएं दी जाती हैं।
यमलोक में खुलते हैं 4 दरवाजे
गरुड़ पुराण में यमलोक में चार द्वार बताए गए हैं। पूर्वी द्वारा से प्रवेश सिर्फ धर्मात्मा और पुण्यात्माओं को मिलता है जबकि दक्षिण द्वार से पापियों का प्रवेश होता है जिसे यमलोक में यातनाएं भुगतनी पड़ती है। साधु-संतों को उत्तर दरवाजे से और दान पुण्य करने वाले मनुष्यों को पश्चिम द्वार से प्रवेश मिलता है।
गरुड़ पुराण में यमलोक में चार द्वार बताए गए हैं। पूर्वी द्वारा से प्रवेश सिर्फ धर्मात्मा और पुण्यात्माओं को मिलता है जबकि दक्षिण द्वार से पापियों का प्रवेश होता है जिसे यमलोक में यातनाएं भुगतनी पड़ती है। साधु-संतों को उत्तर दरवाजे से और दान पुण्य करने वाले मनुष्यों को पश्चिम द्वार से प्रवेश मिलता है।
कौन है यमलोक के सेवक
जो यमराज और यमलोक की सेवा करते हैं उन्हें यमदूत कहते हैं। द्वारपाल को धर्मध्वज कहते हैं। ऋग्वेद में कबूतर और उल्लू को यमराज का दूत बताया गया है। गरुड़ पुराण में कौआ को यम का दूत कहा गया है। यमलोक के द्वार पर दो विशाल कुत्ते पहरा देते हैं।
जो यमराज और यमलोक की सेवा करते हैं उन्हें यमदूत कहते हैं। द्वारपाल को धर्मध्वज कहते हैं। ऋग्वेद में कबूतर और उल्लू को यमराज का दूत बताया गया है। गरुड़ पुराण में कौआ को यम का दूत कहा गया है। यमलोक के द्वार पर दो विशाल कुत्ते पहरा देते हैं।
यमराज लेते हैं सलाहकारों की राय
यमलोक के भवन का निर्माण देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने किया है। यमराज सजा देने से पहले अपने कई सलाहकारों से सलाह लेते हैं। यमराज की सभा में कई चंद्रवंशी और सूर्यवंशी राजा सलाहकार की भूमिका निभाते हैं।
यमलोक के भवन का निर्माण देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने किया है। यमराज सजा देने से पहले अपने कई सलाहकारों से सलाह लेते हैं। यमराज की सभा में कई चंद्रवंशी और सूर्यवंशी राजा सलाहकार की भूमिका निभाते हैं।
आत्माओं को इस स्थान पर मिलता है तर्पण का फायदा
यमलोक में पुष्पोदका नामक एक नदी है जिसका शीतल और सुगंधित पानी बहता रहता है। इस नदी में अप्सराएं क्रीड़ा करती रहती हैं। मृत्यु के बाद आत्माएं थोड़ी देर के लिए इस जगह पर आराम करती हैं। इसी स्थान पर परिजनों द्वारा किया जाने वाला पिंडदान आत्माओं का प्राप्त होता है और उनको तृप्ति मिलती है।
यमलोक में पुष्पोदका नामक एक नदी है जिसका शीतल और सुगंधित पानी बहता रहता है। इस नदी में अप्सराएं क्रीड़ा करती रहती हैं। मृत्यु के बाद आत्माएं थोड़ी देर के लिए इस जगह पर आराम करती हैं। इसी स्थान पर परिजनों द्वारा किया जाने वाला पिंडदान आत्माओं का प्राप्त होता है और उनको तृप्ति मिलती है।
चित्रगुप्त है यमराज के सहायक
गरुड़ पुराण के अनुसार यमलोक में बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएं और राजमार्ग हैं। यमलोक में यमराज के सहायक चित्रगुप्त का भी महल है। यमराज अपने राजमहल में ‘विचार-भू’ नाम के सिंहासन पर बैठते हैं। आत्माओं का लेखा-जोखा चित्रगुप्त करते हैं। यमराज मृत्यु के देवता हैं। यमराज पिता सूर्य देव और माता का नाम संज्ञा है। यमराज की बहन यमुना हैं और इनका वाहन भैंसा है।
गरुड़ पुराण के अनुसार यमलोक में बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएं और राजमार्ग हैं। यमलोक में यमराज के सहायक चित्रगुप्त का भी महल है। यमराज अपने राजमहल में ‘विचार-भू’ नाम के सिंहासन पर बैठते हैं। आत्माओं का लेखा-जोखा चित्रगुप्त करते हैं। यमराज मृत्यु के देवता हैं। यमराज पिता सूर्य देव और माता का नाम संज्ञा है। यमराज की बहन यमुना हैं और इनका वाहन भैंसा है।
--Advertisement--