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लखनऊ।। उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम में कहने को तो प्रबंध निदेशक रणवीर प्रसाद के आने के बाद भ्रष्टाचार पर अंकुश की बात का ढिंढोरा पीटा जा रहा है लेकिन कहानी कुछ और ही है। यहाँ अभी भी अधिकारीयों द्वारा बड़े-बड़े खेल खेले जा रहे हैं। भोगांव (मैनपुरी) का एक मामला हाल ही में सुर्ख़ियों में आया था जिसमें क्षेत्रीय प्रबंधक आगरा द्वारा 300 आवासीय भूखंडों के आवंटन में जमकर धंधली की गयी। मामला एमडी रणवीर प्रसाद तक पहुंचा भी लेकिन अभी तक कोई कार्यवाई नहीं हुई। अब एक नया चौंकाने वाला मामला सामने आया है। मामला क्षेत्रीय कार्यालय कानपुर का है जहाँ भूखंड के हस्तांतरण में खेल किया गया है। इस खेल में क्षेत्रीय प्रबंधक कानपुर राकेश झा का नाम सामने आ रहा है।






भूखंड संख्या जिसपर 10 वर्ष बाद तक भी कोई इकाई स्थापित नहीं की गयी लेकिन तत्कालीन क्षेत्रीय प्रबंधक आर एस पाठक ने ऑपरेटिंग मैन्युअल के विपरीत वर्ष 2013 में ममता बुधौलिया के नाम से बिना लीज डीड के हस्तांतरित कर दिया। हस्तांतरण के समय प्रथम आवंटी द्वारा उक्त भूखंड पर बकाया धनराशि को भी जमा ही नहीं किया गया। नियमविरुद्ध तरीके से उसका हस्तांतरण कर दिया गया। सूत्रों की मानें तो उक्त भूखंड तत्कालीन क्षेत्रीय प्रबंधक आर एस पाठक का ही है और खुद आर एस पाठक ने ही इसका हस्तांतरण किया। बता दें कि उक्त भूखंड संख्या 7 का आवंटन 2004 में हुआ था और 2013 में उक्त भूखंड का हस्तांतरण किया गया।

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वर्तमान समय में भी उक्त भूखंड रिक्त है और सूत्रों की मानें तो उसका गोदाम के रूप में इस्तेमाल हो रहा है। यह तो एकमात्र उदाहरण है। भारत सरकार की योजना ग्रोथ सेंटर जैनपुर में लैंड-ट्रेडिंग करके निगम के अधिकारियों ने लाखों-करोड़ों की हेरा-फेरी की। जिसमें बिना रजिस्ट्री के भूखंडों का हस्तांतरण, विना विज्ञापन के भूखंडों का आवंटन, रेस्टोरेशन के उपरांत बिना इकाई स्थापित किये और बिना रजिस्ट्री कराये भूखंडों का हस्तांतरण आदि मामले शामिल हैं। आज भी निरस्तीकरण योग्य भूखंडों को बचाया जा जा रहा है। इन सब की आड़ में निगम के अधिकारी करोड़ों रूपये डकार चुके हैं। यदि औद्योगिक क्षेत्र जैनपुर ग्रोथ सेंटर की समस्त पत्रावलियों की जाँच किसी बाहरी एजेंसी से करवाई जय तो लाखों-करोड़ों के राजस्व की छति और निगम की छति उजागिर हो सकती है।

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इस मामले में तत्कालीन क्षेत्रीय प्रबंधक आर एस पाठक के उनके मोबाइल पर बात की गयी तो उन्होंने बताया कि उक्त भूखंड का हस्तांतरण उन्होंने ही किया था। उनका यह भी कहना था लीज-डीड होने के बाद ही हस्तांतरण किया गया। जबकि निगम के सूत्रों की माने तो लीज-डीड हुई ही नहीं। निगम सूत्रों के मानें तो उक्त भूखंड पर 55 लाख की धनराशि बकाया है। इस प्रकरण में वर्तमान क्षेत्रीय प्रबंधक राकेश झा से बात करने की कोशिश की गयी तो उनका फोन नहीं उठा।

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