धर्म डेस्क. कुंभ में 15 जनवरी के पहले शाही स्नान के साथ ही मेले का आयोजन शुरू हो गया है। इसके साथ ही चार मार्च तक तकरीबन 50 दिन तक यह कार्यक्रम चलेगा और इस दौरान आठ मुख्य पर्वों पर शाही स्नान होंगे। इस दौरान दुनिया के सबसे बड़े इस धार्मिक आयोजन में करीब 12 करोड़ लोगों के शिरकत करने की संभावना है। सिर्फ इतना ही नहीं लाखों विदेशी नागरिक भी अभिभूत होकर कुंभ मेले के सांस्कृतिक पक्ष का आनंद लेंगे। यहीं से सवाल उठता है कि आम स्नान की तुलना में शाही स्नान क्या होता है?
शाही स्नान
इसके तहत साधु-संत से जुड़े 13 अखाड़े शुभ-मुहूर्त के लिए तय समय पर संगम या किसी पवित्र नदी में स्नान करते हैं। मान्यता है कि इस शुभ-मुहूर्त में स्नान करने से मोक्ष का वरदान मिलता है। साधु-संतो और उनसे जुड़े नागा साधुओं के कुल 13 अखाड़े हैं। इस तरह हर पर्व पर धार्मिक आधार पर शाही स्नान का समय और अवधि प्रशासन द्वारा तय किया जाता है। मोटेतौर पर एक अखाड़े के लिए 45 मिनट का समय निर्धारित किया जाता है।
हर अखाड़ा तय समय अनुसार अपने वैभव और शक्ति का प्रदर्शन करने के साथ हाथी-घोड़े और सोने-चांदी की पालकियों और शस्त्रों के साथ स्नान के लिए पहुंचते हैं। आमतौर पर शाही स्नान के लिए अखाड़ों के लिए जो जगह तय की जाती है, वहां पर आम जनता को स्नान की अनुमति नहीं दी जाती। शाही स्नान के बाद उन जगहों पर आम लोगों को स्नान की अनुमति दी जाती है।
नागा साधु
कुंभ में हमेशा नागा अखाड़ों के शाही स्नान सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र होते हैं। शिव के भक्त इन नागा साधुओं की एक रहस्यमय दुनिया है। केवल कुंभ में ही ये दिखते हैं। उसके पहले और बाद में आम आबादी के बीच ये कहीं नहीं दिखते। आम आबादी से दूर ये अपने ‘अखाड़ों’ में रहते हैं। कहा जाता है कि प्राचीन काल में ऋषि दत्तात्रेय ने नागा संप्रदाय की स्थापना की। आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए नागा संप्रदाय को संगठित किया। ये भगवान शिव के उपासक होते हैं। नागा साधु जिन जगहों पर रहते हैं, उनको ‘अखाड़ा’ कहा जाता है। ये अखाड़े आध्यात्मिक चिंतन और कुश्ती के केंद्र होते हैं।
‘अखाड़े’
शंकराचार्य ने सनातन धर्म की स्थापना के लिए देश के चार कोनों में चार पीठों का निर्माण किया। उन्होंने मठों-मंदिरों की संपत्ति की रक्षा करने के लिए और धर्मावलंबियों को आतताईयों से बचाने के लिए सनातन धर्म के विभिन्न संप्रदायों की सशस्त्र शाखाओं के रूप में ‘अखाड़ों’ की शुरुआत की। दरअसल सामाजिक उथल-पुथल के उस युग में आदिगुरू शंकराचार्य को लगा कि केवल आध्यात्मिक शक्ति से ही धर्म की रक्षा के लिए बाहरी चुनौतियों का मुकाबला नहीं किया जा सकता। इसलिए उन्होंने जोर दिया कि युवा साधु व्यायाम करके अपने शरीर को कसरती बनाएं और शस्त्र चलाने में भी निपुणता हासिल करें। इसलिए ऐसे मठों का निर्माण हुआ जहां इस तरह के व्यायाम या शस्त्र संचालन का अभ्यास कराया जाता था, ऐसे मठों को ही ‘अखाड़ा’ कहा गया।
देश में आजादी के बाद इन अखाड़ों ने अपने सैन्य चरित्र को त्याग दिया। इन अखाड़ों के प्रमुख ने जोर दिया कि उनके अनुयायी भारतीय संस्कृति और दर्शन के सनातनी मूल्यों का अध्ययन और अनुपालन करते हुए संयमित जीवन व्यतीत करें। इस समय निरंजनी अखाड़ा, जूनादत्त या जूना अखाड़ा, महानिर्वाण अखाड़ा, निर्मोही अखाड़ा समेत 13 प्रमुख अखाड़े हैं।