इस वजह से शिवसेना सुप्रीम कोर्ट में नहीं देगी राष्ट्रपति शासन को चुनौती

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महाराष्ट्र की राजनीति पिछले कुछ दिनों से गर्म है, सभी राजनीतिक पार्टियां सरकार ना बनाने के लिए एक दूसरे को दोषी ठहरा रही हैं. वहीं दूसरी तरफ शिवसेना ने भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लगाते हुए कहा था कि पार्टी का आला नेतृत्व वादा खिलाफी कर रहा है. गौरतलब है कि महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्‍यारी द्वारा राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने से शिवसेना ने फिलहाल इनकार कर दिया है।

आपको बता दें कि राज्यपाल द्वारा सरकार गठन के लिए उन्हें केवल 24 घंटे दिए जाने वाली याचिका को लेकर भी शिवसेना ने आज सुनवाई की मांग नहीं की। हालांकि महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए शिवसेना को पर्याप्त समय नहीं देने के गवर्नर के फैसले के खिलाफ शिवसेना ने मंगलवार को सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। बुधवार को शिवसेना के वकील सुनील फर्नांडीस ने मीडिया को बताया कि राष्ट्रपति शासन के बाद पुरानी याचिका मेंशन करने का मतलब नहीं रह गया। राष्ट्रपति शासन को चुनौती देने को याचिका दाखिल करने का अभी फैसला नहीं हुआ है।

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गौरतलब है कि शिवसेना ने राज्यपाल द्वारा सरकार बनाने के लिए बहुमत प्रदर्शित करने के लिए दिए गए 24 घंटे के समय को नहीं बढ़ाने के फैसले के खिलाफ मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। वहीं विधानसभा चुनाव के दौरान शिवसेना को 288 सदस्यीय विधानसभा में 56 सीटें मिली हैं और वह दूसरी बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। शिवसेना ने कहा कि था उसे राज्यपाल की ‘मनमानी व दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई’ से तत्काल राहत पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने को विवश होना पड़ा है।

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वहीं शिवसेना ने न्यायालय जा कर राज्यपाल के आदेश को रद्द करने की मांग की थी और राज्यपाल की कार्रवाई को असंवैधानिक, मनमाना, अवैध व संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन घोषित करने की मांग की थी। पार्टी ने राज्यपाल के व्यवहार को लेकर सवाल उठाया था और कहा था कि राज्यपाल इस तरीके से या ‘केंद्र सरकार के इशारे पर’ काम नहीं कर सकते। राज्यपाल ने सबसे बड़ी पार्टी भाजपा द्वारा सरकार बनाने में असमर्थ होने की बात कहने पर शिवसेना को आमंत्रित किया था। शिवसेना का आरोप था कि राज्यपाल बेहद जल्दबाजी में थे। उन्होंने सरकार बनाने के लिए अपेक्षित बहुमत साबित करने के लिए तीन दिन का समय देने से इनकार कर दिया।

वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, वकील सुनील फर्नाडिस व निजाम पाशा के द्वारा याचिका दायर की गई। इसमें कहा गया है कि राज्यपाल की कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 14 व अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। यह शक्ति का मनमाना, अनुचित, स्वेच्छाचारी और दुर्भावनापूर्ण उपयोग है, जिससे सुनिश्चित किया जाए कि याचिकाकर्ता नंबर 1 (शिवसेना) को सदन के पटल पर बहुमत साबित करने के अवसर से वंचित किया जा सके।

याचिका के अनुसार, शिवसेना ने सरकार बनाने के लिए अपेक्षित बहुमत का समर्थन पत्र देने के लिए तीन दिन का समय देने की मांग की थी। शिवसेना ने कहा कि पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) व कांग्रेस के साथ सरकार गठन के लिए वार्ता कर रही थी। अपनी याचिका में शिवसेना ने अपने पार्टी द्वारा उठाए गए कदमों में पार्टी के सांसद संजय राउत की राकांपा प्रमुख शरद पवार से मुलाकात का भी उल्लेख किया है और कहा कि ये वार्ता सकारात्मक दिशा में थी।

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