चुनाव से ज्यादा शासन में चर्चा का विषय बने चर्चित भ्रष्ट आईएएस महेश गुप्ता, चीफ सेक्रेटरी अनूप चंद्र पांडेय कर रहे…

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लखनऊ।। भ्रष्ट आईएएस अफसर महेश कुमार गुप्ता इस समय अपने काले कारनामों के चलते इस समय मीडिया की सुर्खियां बने हुए हैं। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश कैडर के 1987 बैच के आईएएस महेश कुमार गुप्ता जिस भी विभाग में रहे हैं, वहां उन्होंने अपने काले कारनामों से सरकार की छवि पर बट्टा ही लगाया है। 1998 में राम प्रकाश गुप्ता की सरकार में सूचना विभाग की भर्तियों में हुए घोटाले की जांच का जिम्मा सीबीआई को मिला था। अपनी जाँच-पड़ताल के बाद सीबीआई ने पिछले वर्ष 9 सितंबर को यूपी सरकार में गृह सचिव रहे महेश गुप्ता समेत तीन लोगों के खिलाफ आरोप पत्र तैयार किया। सूचना विभाग में उस वक्त महेश गुप्ता डायरेक्टर थे।

तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के कार्यकाल के दौरान आबकारी आयुक्त जैसे महत्वपूर्ण पदों पर तैनात रहे। शराब व्यवसाय में एक सिंडीकेट को फायदा पहुंचाने की नियत ऐसी आबकारी नीति बनाई, जिससे सरकार को कम और उस शराब सिंडीकेट को बहुत फायदा हुआ। अखिलेश यादव सरकार में आईएएस महेश कुमार गुप्ता को प्रमुख सचिव औद्योगिक विकास के साथ-साथ लखनऊ के कमिश्नर की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी इसी वजह से दी गई थी।

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नोएडा में एसईजेड को लेकर कुछ शर्तों को तय करने को लेकर उन्होंने एक आदेश कर दिया था। कुछ कारपोरेट औद्योगिक घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए अपने आदेश में कुछ नई शर्तें जोड़ दी गईं, जिसके लिए उन्होंने पूर्ववर्ती सरकार को भरोसे में नहीं लिया था। इसी वजह से अखिलेश यादव सरकार ने प्रमुख सचिव औद्योगिक विकास के साथ लखनऊ के कमिश्नर के पद से हटा दिया था। लखनऊ मण्डलायुक्त के पद पर तैनाती के दौरान गोमती नगर स्थित सहारा शहर के विवादित नक्शे को पास कर दिया था।

अब महेश गुप्ता ने अपनी भ्रष्ट प्रवृत्ति के अनुरूप दिव्यांग कल्याण विभाग में भी खेल शुरू कर दिया है। इसकी छींटे योगी सरकार पर पडऩे लगी हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शकुंतला मिश्रा दिव्यांग विश्वविद्यालय के कुलपति की अनियमितताओं को लेकर जांच के आदेश दिए थे। जांच की कमान विभाग के प्रमुख सचिव महेश गुप्ता को सौंपी गई। इस जांच रिपोर्ट में भी काफी लीपापोती की गई।

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अभी हाल ही में हाईकोर्ट लखनऊ के आदेश की अवमानना के चलते वरिष्ठ आईएएस व अपर अपर मुख्य सचिव सचिवालय प्रशासन विभाग महेश कुमार गुप्ता को बीते मंगलवार को उन्हें कोर्ट के उठने तक हिरासत में रहना पड़ा और 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगा। जिससे योगी सरकार की काफी किरकिरी हुई। बतादें कि जस्टिस विवेक चौधरी की बेंच में दाखिल एक अवमानना याचिका में कहा गया था कि कोर्ट ने सहायक समीक्षा अधिकारियों की जिस सूची को खारिज कर दिया था, उसी सूची से अपर मुख्य सचिव ने प्रमोशन लिस्ट बना दी। इस पर कोर्ट ने महेश कुमार गुप्ता को मंगलवार को कोर्ट में हाजिर होने का आदेश दिया था।

सुबह 11 बजे कोर्ट में पहुंचते ही उन्हें हिरासत में लेने का आदेश दिया गया। काफी देर तक हिरासत में रहने पर महेश गुप्ता के वकील ने कोर्ट से आग्रह किया कि इसे ही पर्याप्त सजा माना जाए। इस कोर्ट ने तल्ख लहजे में कहा कि राज्य सरकार के अधिकारियों को लगता है कि वे अदालत की अवमानना करने के बाद माफी मांगकर कर बच जाएंगे। सजा सुनाए जाने के कुछ ही मिनटों बाद जस्टिस विवेक चौधरी ने देखा कि महेश गुप्ता कोर्ट रूम से नदारद हैं।

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जस्टिस ने पुलिसकर्मियों को उन्हें बुलाने का निर्देश दिया। हाजिर होने पर कोर्ट ने उन्हें जमकर फटकार लगाई। महेश गुप्ता ने कई बार सॉरी-सॉरी बोलते हुए सफाई दी कि वह टॉयलेट गए थे। इस पर कोर्ट ने कहा कि बगैर इजाजत के वह हिल तक नहीं सकते। इसके बाद महेश गुप्ता ने फिर कई बार सॉरी-सॉरी बोला। शाम सवा तीन बजे जब कोर्ट उठने लगी तब महेश गुप्ता को रिहा करने का आदेश दिया गया।

सचिवालय प्रशासन विभाग की जिम्मेदारी आईएएस महेश कुमार गुप्ता को मिलने के बाद से ही इस विभाग के कारनामे इन दिनों सुर्खियों में हैं। आईएएस महेश गुप्ता अधिकतर भ्रष्टाचार के आरोपी बाबुओं के संरक्षणदाता बनकर उभरे हैं। सचिवालय प्रशासन विभाग में स्थानांतरण नीति की भी खूब धज्जियां उड़ाई गईं। सचिवालय के कार्मिकों के लिए कम्प्यूटर खरीद में करोड़ों का घपला हुआ। सूत्रों की मानें तो कम्प्यूटर खरीद घोटाले की जाँच चीफ सेक्रेटरी अनूप चंद्र पांडेय कर रहे हैं लेकिन जाँच को गति को देखते हुए अब मुख्य सचिव पर भी अंगुली उठने लगी है। वर्षों से लगे दो समीक्षा अधिकारी ‘त्रिपाठी और गुप्ता’ अपर मुख्य सचिव महेश गुप्ता के काले कारनामों को बखूबी अंजाम दे रहे हैं। अपर मुख्य सचिव महेश गुप्ता के काले कारनामों को लेकर सचिवालय के कई संगठन धरना-प्रदर्शन भी कर चुके हैं।

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