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यूपी किरण ब्यूरो

लखनऊ।। आपराधिक मामले में अपराधियों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध के बारे के मामले में स्पष्ट रुख न जाहिर करने पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को फटकार लगाई है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई नौकरशाह दोषी ठहराया जाता है तो वह आजीवन नौकरी से बर्खास्त हो जाता है। लेकिन राजनेताओं पर छह वर्ष की पाबंदी क्यों? उन पर क्यों नहीं आजीवन प्रतिबंध लगना चाहिए। मामले में अगली सुनवाई 19 जुलाई को होगी।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स के मुताबिक 2017 में पांच राज्यों (उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर) में हुए चुनाव में चुने गए 690 विधायकों में से 192 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। 690 में से 140 के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले हैं, जिनमें पांच साल याह उससे ज्यादा की सजा हो सकती है।

खबर के मुताबिक यूपी के 403 विधायकों में से 143 यानी 36 फीसदी विधायकों पर आपराधिक रिकॉर्ड दर्ज है, जिनमें से 107 विधायकों यानी 26 फीसदी पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं।

गंभीर प्रवृत्ति के आपराधिक मामलों की बात करें तो इसमें बीजेपी अव्वल है। भाजपा के सर्वाधिक 83 यानी 27 फीसद, सपा के 11 (24 फीसद), बसपा के 4 (21 फीसद), कांग्रेस के एक (14 फीसद) और तीन निर्दलीयों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ हत्या समेत कई गंभीर मामले दर्ज हैं।

लोकसभा चुनाव के लिए उन्होंने मई 2014 में जो हलफ़नामा चुनाव आयोग में दाख़िल किया था, उसके मुताबिक़ उनके ख़िलाफ़ 11 आपराधिक मामले हैं। इनमें 302 (हत्या), 153 (दंगा भड़काना) और 420 (धोखाधड़ी) जैसे आरोप शामिल थे। 

न्यायमूर्ति रंजन गोगोई व न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि इस मामले पर आयोग को अपना रुख स्पष्ट करना होगा, चुप्पी साधे रहना कोई विकल्प नहीं है। बता दें कि वर्तमान प्रावधान के मुताबिक किसी सजायाफ्ता व्यक्ति के छह वर्ष तक ही चुनाव लड़ने पर पाबंदी है।

फोटोः फाइल

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