img

नई दिल्ली।। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में संभवतः पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने एक नया नैरेटिव गढ़ने की कोशिश की है। यह कोशिश है विनायक दामोदर सावरकर को भारत रत्न देकर उन्हें दक्षिणपंथी राजनीति का शिखर पुरुष घोषित करने की है। 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद महाराष्ट्र में हिंसा फैली। उसका मुख्य लक्ष्य सावरकर और गोडसे के समुदाय के चितपावनी ब्राह्मण थे, जिन पर हमले हुए और जिनके लगभग 8000 लोगों को गांधी समर्थकों ने मार डाला था।

गांधी की हत्या का विरोध कुछ इस कदर था कि हिंदू महासभा जैसे हिंदूवादी संगठनों ने देश विभाजन के बाद मुसलमानों के खिलाफ नफरत को भुनाकर हिंदुत्व की राजनीति के लिए जो वातावरण हासिल किया था। वह गांधी की हत्या के बाद खत्म हो गया। जो हिंदू समुदाय मुसलमान के विरोध में उठ खड़ा हुआ था, वह अचानक इन कट्टरवादी दक्षिणी संगठनों के खून का प्यासा हो गया। इसका सर्वाधिक असर महाराष्ट्र, गुजरात जैसे राज्यों में, जहां हर व्यक्ति गांधी टोपी पहना दिखाई देता था। विशेषकर महाराष्ट्र में दक्षिणपंथी संगठनों और उनसे जुड़े लोगों को चुन-चुन कर गांधी की हत्या के बाद मौत के घाट उतारा गया।

आज फिर हालात वैसे ही हैं। गांधीजी की वैचारिक हत्या का सुनियोजित षड्यंत्र किया जा रहा है। सावरकर का महिमामंडन, मोदी – शाह की जोड़ी का एक ऐसा दांव है। जो उल्टा पड़ गया, तो महाराष्ट्र से भाजपा-शिवसेना गठबंधन की विदाई भी हो सकती है। आज भी हालात कुछ-कुछ वैसे ही हैं जैसे 1948 में थे। फर्क इतना है कि देश विभाजित नहीं हुआ है और ना ही दंगे हो रहे हैं, लेकिन सोशल मीडिया से लेकर लोगों के समूह के बीच वैचारिक विभाजन स्पष्ट देखा जा सकता है। एक वह हैं, जो सावरकर का समर्थन करते हैं और उन्हें स्वतंत्रता संग्राम का अहम किरदार मानते हैं। दूसरे लोग वे हैं, जो सावरकर को अंग्रेजों का मुखबिर मानते हुए उन्हें समझौतावादी और देशद्रोही मानते हैं।

इन दोनों विचारधाराओं से बेखबर नरेंद्र मोदी, अमित शाह और देवेंद्र फडणवीस ने सावरकर को महाराष्ट्र की राजनीति में स्थापित करके एक तरह से ब्राह्मणवादी राजनीति का श्रीगणेश किया है। देवेंद्र फडणवीस उसी समुदाय से हैं, जिस समुदाय के सावरकर थे। महाराष्ट्र में शक्तिशाली मराठाओं को साधने के लिए मोदी और शाह की जोड़ी ने देवेंद्र फडणवीस के माध्यम से मराठा आरक्षण का दांव खेला। अब शक्तिशाली महाराष्ट्रियन ब्राह्मण की लॉबी को सावरकर के माध्यम से साधा जा रहा है। यह प्रयोग असफल रहेगा, अथवा सफल, यह तो चुनावी परिणाम ही बता पाएंगे। इतना तय है कि यदि सावरकर के बहाने भारतीय जनता पार्टी को महाराष्ट के चुनाव में जीत मिली, तो भाजपा की ‘ गांधी भक्ति ‘ उजागर हो जाएगी। क्योंकि सावरकर और गांधी दो ऐसी तलवारें हैं। जो एक म्यान में नहीं रह सकती।

आंकड़ों की दृष्टि से माहौल किसी एक दल के पक्ष में भी हो सकता है लेकिन वैचारिक आधार पर भाजपा महाराष्ट्र में सावरकर और गांधी के बीच में फंसी हुई है। हिन्दुओं में भी ब्राहम्ण और गैर ब्राहम्णवाद का असर भी इस चुनाव में देखने को मिल सकता है।

--Advertisement--