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यूएस बैंक संकट और यूरोप के बड़े बैंकों पर इसके प्रभाव की चर्चा की जा रही है। इस बीच बैंकरप्ट और दिवालिया होने की कगार पर खड़े इन ग्राहकों के मन में एक सवाल खड़ा हो गया है कि आखिर उनके पैसे का क्या होगा?

अमेरिकी नियामक और सरकार दोनों कह रहे हैं कि उपभोक्ताओं का पैसा नहीं डूबेगा। लेकिन उन्हें उनका पैसा कब और कैसे वापस मिलेगा? किसी के पास जवाब नहीं है। कोई बैंक कब दिवालिया हो जाता है और भारत में इसके बारे में क्या कानून हैं? आईये जानते हैं।

भारत में भी बैंक फेल होने की स्थिति में ग्राहकों के लिए जमा बीमा की सुविधा 60 के दशक से चली आ रही है। रिजर्व बैंक के अधीन देश का डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (DICGC) इन नियमों के अंतर्गत जनता की जमा राशि का बीमा करता है.

4 फरवरी 2020 से पहले भारत में बैंक डिपॉजिट पर डिपॉजिट इंश्योरेंस सिर्फ एक लाख रुपए था। यानी अगर आपका बैंक डिपॉजिट 10 लाख से ज्यादा है तो बैंक बंद होने या दिवालिया होने पर आपको सिर्फ 1 लाख रुपये ही वापस मिलेंगे.

मोदी सरकार ने इस नियम में बदलाव करते हुए जमा बीमा कवर को 1 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दिया। यानी दिवालिया बैंक में जिन ग्राहकों के खाते हैं, उनका 5 लाख रुपये तक का बीमा है.

जिस तारीख को बैंक का लाइसेंस रद्द किया जाता है या बैंक को बंद घोषित किया जाता है, उस तारीख को ग्राहक अपने खाते में जमा और ब्याज से अधिकतम पांच लाख रुपये प्राप्त कर सकता है।

90 दिनों के अंदर दिया जाता है पैसा

जमा बीमा प्रणाली में बचत खाता, चालू खाता, आवर्ती खाता सहित सभी प्रकार के जमा शामिल हैं, जिसमें जमा की गई राशि का बीमा किया जाता है। यहां सबसे खास बात यह है कि इस नियम के तहत बीमा के तहत बैंक बंद होने की स्थिति में खाताधारकों को 90 दिनों के भीतर भुगतान हो जाता है।

 

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