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कर्नाटक की सियासत में इन दिनों जाति जनगणना रिपोर्ट ने एक ऐसा भूचाल ला दिया है। इसने न सिर्फ मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की कुर्सी को हिला दिया है, बल्कि कांग्रेस के ‘सामाजिक न्याय’ के एजेंडे को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है।
एक तरफ राहुल गांधी इस रिपोर्ट को ऐतिहासिक कदम बताते हैं। तो दूसरी तरफ सिद्धारमैया की खुद की कैबिनेट के मंत्री इस पर सवाल दाग रहे हैं। सवाल उठता है कि क्या ये रिपोर्ट कांग्रेस के लिए सामाजिक न्याय की राह है या समाज को बांटने वाली एक राजनीतिक चाल?
क्या है जाति जनगणना रिपोर्ट का विवाद
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार द्वारा प्रस्तुत की गई जाति आधारित जनगणना रिपोर्ट पर विवाद तब शुरू हुआ जब सामने आया कि इस रिपोर्ट में वोक्कालिगा और लिंगायत जैसी प्रभावशाली जातियों की जनसंख्या को काफी कम दिखाया गया है।
इन्हीं दोनों समुदायों से आने वाले कई मंत्री, जो खुद सिद्धारमैया की सरकार में शामिल हैं, अब रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहे हैं। इससे यह साफ हो गया कि मामला केवल विपक्ष बनाम सरकार नहीं रह गया है, बल्कि सरकार के भीतर का टकराव भी सतह पर आ गया है।
डेटा या धोखा रिपोर्ट में गड़बड़ियों का आरोप
शहरी इलाकों में डेटा संग्रह अधूरा रहा। फॉर्म भरने की प्रक्रिया में लापरवाही बरती गई और डिजिटल डेटा एंट्री में त्रुटियां पाई गईं। इससे जनसंख्या के आंकड़ों में व्यापक विसंगतियां देखने को मिल रही हैं, जो रिपोर्ट की साख पर बड़ा सवाल उठा रहे हैं।
सियासी गलियारों में चर्चा है कि सिद्धारमैया पर राहुल गांधी का प्रेशर है कि वो इस रिपोर्ट को लागू करें ताकि कांग्रेस खुद को ‘सामाजिक न्याय की पैरोकार’ पार्टी के तौर पर पेश कर सके। मगर हकीकत ये है कि इससे सिद्धारमैया और डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के बीच का सत्ता संघर्ष और तेज हो सकता है। खुद सिद्धारमैया पहले से भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अक्षमता के आरोपों से घिरे हैं। जातिगत आंकड़े लीक होने से कांग्रेस की छवि और जनाधार दोनों को खतरा है।