img

नई दिल्ली ।। सुकमा से एक वीडियो वायरल हो रहा है। कहा जा रहा है कि यह वीडियो दो दिन पहले सुकमा में मारे गए 25 जवानों का है।

हालांकि यूपी किरण इसकी पुष्टि नहीं करता है, कि ये वीडियो सही है, लेकिन यदि यह वीडियो सही है, तो यह काफी गंभीर बात है। इससे साफ है कि नक्सली कितनी आसानी से एक एक कर जवानों को गोली मारते रहे और उनकी तलाशी लेते रहे।

वीडियो देखने के लिए क्लिक करिए…

दरअसल, आज देश जिस नक्‍सलवाद से जूझ रहा है उसकी शुरुआत प. बंगाल के छोटे से गांव नक्‍सलबाड़ी से हुई। भारतीय कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के चारू मुजुमदार और कानू सान्‍याल ने 1967 में एक सशस्‍त्र आंदोलन को नक्‍सलबाड़ी से शुरू किया इसलिए इसका नाम नक्‍सलवाद हो गया।

बहरहाल, उनका मानना था कि भारतीय मज़दूरों और किसानों की दुर्दशा के लिए सरकारी नीतियां और पूरी लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था जिम्मेदार है। सिलिगुड़ी में पैदा हुए चारू मजूमदार आंध्र प्रदेश के तेलंगाना आंदोलन से व्‍यवस्‍था से बागी हुए। इसी के चलते 1962 में उन्हें जेल में रहना पड़ा, जहां उनकी मुलाकात कानू सान्‍याल से हुई।

वैसे नक्‍सलवाद के असली जनक कानू ही माने जाते हैं। कानू का जन्‍म दार्जिंलिग में हुआ था। वे पश्‍चिम बंगाल के सीएम विधानचंद्र राय को काला झंडा दिखाने के आरोप में जेल में गए थे। कानू और चारू मुजुमदार जब बाहर आए, तो उन्‍होंने सरकार और व्‍यवस्‍था के खिलाफ सशस्‍त्र विद्रोह का रास्‍ता चुना। कानू ने 1967 में नक्सलबाड़ी में सशस्त्र आंदोलन की अगुवाई की। आगे चलकर कानू और चारू के बीच वैचारिक मतभेद बढ़ गए और दोनों ने अपनी अलग राहें, अलग पार्टियों के साथ बना लीं।

बहरहाल, चारू मुजुमदार की मृत्‍यु 1972 में हुई, जबकि कानू सान्‍याल ने 23 मार्च 2010 को फांसी लगा ली। हालांकि दोनों की मृत्‍यु के बाद नक्‍सलवादी आंदोलन भटक गया। लेकिन यह भारत के कई राज्‍यों आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ, उड़ीसा, झारखंड और बिहार तक फैलता गया, पर जिन वंचितों, दमितों, शोषितों के अधिकारों की लड़ाई के लिए शुरू हुआ, ना तो उनके कुछ हाथ आया, न नक्‍सलवादियों के। हिंसा की बुनियाद पर रखी इस आंदोलन की भटकाव ही परिणिति थी।

देश के कई राज्‍य आज भी लंबे समय से इसे झेल रहे हैं। नक्‍सलवादी हिंसा में सैंकड़ो बेगुनाहों की मौत हो चुकी है जबकि देश का आदिवासी समुदाय भी अप्रत्‍यक्ष और प्रत्‍यक्ष रूप से इस हिंसा का शिकार है।