कोरोना त्रासदी के चलते देश की अर्थव्यवस्था बुरे दौर में पहुंच गई है। 67 फीसदी श्रमिकों ने अपना रोजगार खो दिया है। लॉकडाउन की वजह से प्रवासी श्रमिक एवं उनके परिवार विशेष रूप से प्रभावित हुए है। इस त्रासदी के प्रभावों का मुकाबला करने और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लेन के लिए तात्कालिक कदमों के साथ ही दीर्घकालिक नीतिगत उपायों की आवश्यकता है।
अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा दस नागरिक संगठनों के सहयोग से 12 राज्यों में लॉकडाउन के प्रभावों पर एक सर्वेक्षण किया गया। सर्वेक्षण के शुरुआती निष्कर्षों के अनुसार लॉकडाउन के दौरान आजीविका लगभग तबाह हो गई है। इस त्रासदी से निपटने के लिए किये जा रहे उपाय बेहद धीमे हैं। स्थिति की गंभीरता के अनुसार राहत के तात्कालिक उपाय नाकाफी हैं।
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सर्वेक्षण के अनुसार कोरोना के खर से देश का शहरी क्षेत्र बेहद गंभीर रूप से प्रभावित है। शहरी क्षेत्रों में 80 फीसदी और ग्रामीण क्षेत्रों में 57 फीसदी लोग बेरोजगार हो चुके हैं। 49 फीसदी लोगों ने बताया कि लाकडाउन के बाद उनके पास इतना पैसा नहीं था कि वे एक सप्ताह के लिए राशन-पानी का इंतजाम कर सकें।
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सर्वेक्षण में लॉकडाउन के प्रभाव का आकलन करने के लिए आंध्र प्रदेश, बिहार, दिल्ली, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में 4,000 श्रमिकों से फोन पर बात की गई । अध्ययन करने वाली टीम ने संकट से प्रभावित लोगों की स्थितियों को सुधारने के लिए कुछ उपाय भी सुझाए हैं।
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सुझाव के मुताबिक़ सभी जरूरतमंदों को कम से कम छह महीने तक मुफ्त राशन और दो महीने के लिए प्रति माह कम से कम 7,000 रुपये नकद धनराशि का भुगतान किया जाना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा से ज्यादा लोगों को काम देने के लिए मनरेगा का दायरा बढ़ाया जाना चाहिए ।
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